Saturday, 21 May 2011

नव सृजन


हे प्रभु 
सृजन का दो वरदान 
युग युग के गहन तिमिर को तोड़ 
हो आलोकित मेरे प्राण 
वाणी में शक्ति 
अर्थ में मुक्ति 
भावों में गहन सागर अपार 
प्रभु , सृजन का दो वरदान 

कल्पना को मेरी पंख  प्रदान कर 
दो अनंत विस्तृत उड़ान
शब्दों  के कल्प तरु से 
मैं पाऊं इच्छित वरदान
प्रभु , सृजन का दो वरदान

निश्छल भावों की मणियों से
भर दो आज ये झोली खाली
लौटे फिर वही भोला बचपन
फिर अधरों पर मृदुल  मुस्कान
प्रभु , सृजन का दो वरदान 

5 comments:

  1. आपकी पोस्ट की हलचल आज (29/10/2011को) यहाँ भी है

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  2. कल्पना को मेरी पंख प्रदान कर
    दो अनंत विस्तृत उड़ान
    शब्दों के कल्प तरु से
    मैं पाऊं इच्छित वरदान
    प्रभु , सृजन का दो वरदान

    बहुत सुन्दर कामना करती रचना ..

    ReplyDelete
  3. Pure thoughts... सृजन का दो वरदान

    www.poeticprakash.com

    ReplyDelete

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