Monday, 27 February 2012

भरम

वो , जो  ज़िन्दगी में, एक पल को भी न आया
बेवफा दिल ने भी उसे ,एक पल को भी न भुलाया 


अक्स उसका ही बसा रहा क्यों, इन आँखों में हर घड़ी
चेहरा जिसका नज़र के सामने कभी हुआ न नुमाया 


सूखे पत्तों की सरसराहट  या कि गुनगुनाई हवा 
उस अनसुनी आवाज़ को सुनाने का गुमाँ सा हुआ 


उसका ही था वजूद, चारों तरफ था उसका ही सरमाया 
हम ही थे भरम में या कि तुमने था हमें  भरमाया 


इक तपिश थी, कशिश थी, कुछ शोखी , कुछ अठखेलियाँ 
हर बार कुछ जुदा सा लगा, जब-जब मुखातिब वो आया 


हवाओं पे लिख के , मौसम के हाथ भेजी थी चिट्ठियां 
अब तक है इंतज़ार, जवाब अब आया कि तब आया.



Wednesday, 22 February 2012

मुकम्मल हयात

एक मुकम्मल हयात की तलाश में, 
ताउम्र बेचैन, भटकते से रहे 
दो जहाँ पाने की फ़िराक में, 
न यहाँ के और न उस जहाँ के रहे 


कभी इस कमी का रोना, 
कभी उस कमी की खलिश 
एक खुशी का सिर पकड़ते, 
तो दूजे को छोड़ते हम रहे 


क्या मिला, कितना मिला, 
इसी हिसाब में खोया चैन औ क़रार
खुदा  की नियामतों  पे  शक, 
 काफ़िर  से  हम  करते  रहे 







Monday, 20 February 2012

कितने चेहरे

कितने चेहरे  ........
                              
एक पर एक 
मुखौटा चढाए
कितने ही चेहरों के पीछे 
खुद को छिपाए 
डर के भागते फिरते हैं 
कहीं अपनी खुद से 
मुलाकात न हो जाए 


हर मौके के लिए                         
एक नया  चेहरा तैयार रखते 
कभी ताजातरीन
कभी ग़मगीन दिखते
क्या भूल नहीं गए हम
वाकई 
क्या महसूस हम करते ?


कभी आईने में 
अक्स असली देख अपना 
बेतरह चौंक जाते  
घड़ी दो घड़ी को तो 
खुद को भी पहचान कहाँ पाते  
फिर कोशिशे करते 
उस चेहरे पे 
नया मुलम्मा चढाने की 
असलियत खुद की 
खुद से ही छिपाने की 


दस चेहरों पे                  
अनगिनत भाव लिए 
क्या बनते नहीं जा रहे हम 
दशानन ........???





Sunday, 19 February 2012

अज्ञात का आकर्षण

जो भी है                              
ज्ञान से परे,
दृष्टि से दूर,
जिह्वा से अकथनीय 
कानों से अश्रव्य
बस 
बार-बार वही  
खींच लेता है 
अज्ञात का आकर्षण 

जो दिख कर भी नहीं दीखता 
कानों में गूंजकर भी 
सुनाई नहीं देता 
बस
बार बार वही 
अश्रव्य  
क्यों देता है 
आमंत्रण...........

 दृष्टि की सीमा 
जहाँ धुंधला जाती है 
दूर क्षितिज पर 
कोई तस्वीर 
बनती - मिटती नज़र आती है 
आस की एक रेशमी-सी 
किरण की डोर
बाँध लेती है 
फैला अपना  सम्मोहन  
और 
उसी डोर में बंधे 
खिंचते से  चले जाते 
उसी अज्ञात, अदृश्य, अश्रव्य की ओर 
  


Thursday, 9 February 2012

'मैं' से मुक्त कहाँ हो पायी

मेरा दिल, मेरी धडकन ,
मेरे ख्याल  औ अशरार  मेरे
मेरी खुशियाँ , गम भी मेरे
सब गीत मेरे, सब राग मेरे,
सब कुछ मैं,
मैं  और बस मेरा
और सिर्फ
मेरे तक सीमित
अभी 'मैं' से मुक्त कहाँ हो पायी..

बस ' मैं ' के आगे रुक जाती
मानो मेरी सारी दुनिया
मेरे लिए बस  'मैं'  ही सरहद
'मैं' ही लगता बस मुझको तो
करीब मेरे दिल के बेहद

मेरे ही चरों ओर भटकते
मेरे बेबस ख्यालात परिंदे
परकटे बेचारे कहाँ तक जाएँ
'मुझ' जहाज के ये वाशिंदे

बस मुझ पे ही खत्म हो जाती
क्यों कायनात सिमट मेरी
क्यों न खुद से आगे  बढ़ पाती
ये खुदगर्ज़ निगाह मेरी

काश.........
तोड़ ये  'मैं ' का बंधन
थोडा तो आगे बढ़ पाती ,
कुछ दूजों के दिल की भी बातें
कुछ तो समझती
कुछ कह पाती ..............



Wednesday, 8 February 2012

छोटा-सा ......ख्याल

हाँ , 
बस अभी-अभी तो आया था ,
एक ख्याल,
छोटा-सा ......ख्याल 
एक नव अंकुर कि तरह 
दिल कि ज़मीन को चीर 
सर निकाल 
बस पनपना ही चाहता था,
और ज्यादा भी क्या
चाहिए था उसे 
बस 
सांत्वना कि हलकी सी बौछार 
उम्मीद के मंद मंद झोंकों का 
हौले से सहला जाना ,
हिम्मत कि कुनकुनी धूप 
और 
दो हथेलियाँ जो उसे बचा पातीं ,
उसके नव पल्लवों को सहला 
उसके पल्लवित हो पाने का 
ख्याल के असलियत में बदल जाने का 
हौंसला दे पातीं 
पर.........
ज्यों ही तनिक अंगडाई - सी  ले 
मुंदी पलकों को खोल 
देखा जो चंहु  ओर
हर निगाह 
एक सवाल बन 
उस पर ही गढ़ी थी 
सकुचा कर समेटना चाहा उसने 
पत्तियों को भीतर अपने 
अचानक 
न जाने कहाँ से 
चारों ओर सर उठाने लगीं
बंदिशों की दीवारें 
नन्हा ख्याल ......... बेतरह डर
छिप जाना चाहता था  दोबारा 
दिल की कोख में 
जहाँ से जन्मा था वो 
तभी देखीं दो हथेलियाँ , बढती अपनी ओर
कुछ उम्मीद-सी जगी  
अपने पनप पाने  की 
पर 
सहारा देने वाली वाली
वो  हथेलियाँ 
बेदर्दी से कुचल रहीं थीं उसे 
इस तरह जन्मते ही 
फ़ना हो गया 
वो एक छोटा-सा ख्याल............

Tuesday, 7 February 2012


न शेर ओ शायरी की अक्ल , 
न गीत ओ गज़ल की समझ .
न ही कविता रचने का शऊर,
न नज़्म गढ़ पाने का माद्दा .
बस कुछ शब्द टूटे फूटे से,
कुछ भाव अनबूझे-अनकहे से.
जुबां पर लाने की जुर्रत में ,
ख्वाब कितने ही फिसल छूटे.
कहीं कल्पना की अधूरी - सी उड़ान  
कहीं असलियत का अधसिला जामा
किसे पकडें, किसे छोड़े की कशमकश में 
हर बार अधूरी रह जाती मेरी.... 'अनुभूति'   

Monday, 6 February 2012

वाकिफ़ हो तुम........

इस दिल कि हर एक धडकन से ,पल - पल बढती इस उलझन से, 
मुँह  फेर  लिया तुमने तो क्या, वाकिफ़ हो तुम भी अनजान नहीं,

जज़्बात तुम्हारे दिल में भी , सर जब-तब अपना उठाते है 
क्यों गला घोटते तुम इनका, आशिक हो,कातिल -सैयाद नहीं. 

इंतज़ार की लम्बी घड़ियों का, हिसाब तुम्हें भी हर-पल का 
अपनी ही चिट्ठी लिख के  फाड़ो, कातिब हो, अपने रकीब नहीं.

गढ़ते हर रोज़ नया किस्सा , करते हर रोज़ नया नखरा,
नहीं मिलना तो न मिलो हमसे, हम भी कुछ कम खुद्दार नहीं 

हाँ, सच है दिल पे जोर कभी , होगा न हुआ है अब तक कभी ,
ये जोर अजमाइश फिर क्यों कर , क्या खुद पे तुम्हें एतबार  नहीं.

कुछ ख्वाब अभी तक बाकी  है , उम्मीद भी शीशा ए दिल में   
तुम आओ, आके तोड़ो इन्हें, बस इतना ही अब इंतज़ार सही .


Thursday, 2 February 2012

मेरी उम्मीद ...



कुछ टूटकर बिखर- सा जाता है ,
हर बार दिल के कोने में कहीं .
कुछ चटकने की -सी 
सदा आती है 
और फिर दूर तलक 
किरच- किरच हो 
कुछ टूटकर बिखर जाता है 


 कई बार सोचा कि आखिर 
क्या शै है यह 
जो रोज टूट कर भी नहीं टूटती 
हर बार फिर 
किसी और रूप में 
फिर से 
नई सी बन 
फिर जी उठती है .....
जिंदगी के सख्त  रास्तों पे 
बढ़ने को 
फिर धकेलती है आगे 
बस उसी के जीवट के सहारे 
कटता जाता है जीवन 
 छोड़  जाते हैं कितने ही अपने 
मगर 
ये है कि 
टूट कर भी नहीं छूटती 
मेरी उम्मीद .......................

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