वो , जो ज़िन्दगी में, एक पल को भी न आया
बेवफा दिल ने भी उसे ,एक पल को भी न भुलाया
अक्स उसका ही बसा रहा क्यों, इन आँखों में हर घड़ी
चेहरा जिसका नज़र के सामने कभी हुआ न नुमाया
सूखे पत्तों की सरसराहट या कि गुनगुनाई हवा
उस अनसुनी आवाज़ को सुनाने का गुमाँ सा हुआ
उसका ही था वजूद, चारों तरफ था उसका ही सरमाया
हम ही थे भरम में या कि तुमने था हमें भरमाया
इक तपिश थी, कशिश थी, कुछ शोखी , कुछ अठखेलियाँ
हर बार कुछ जुदा सा लगा, जब-जब मुखातिब वो आया
हवाओं पे लिख के , मौसम के हाथ भेजी थी चिट्ठियां
अब तक है इंतज़ार, जवाब अब आया कि तब आया.
बेवफा दिल ने भी उसे ,एक पल को भी न भुलाया
अक्स उसका ही बसा रहा क्यों, इन आँखों में हर घड़ी
चेहरा जिसका नज़र के सामने कभी हुआ न नुमाया
सूखे पत्तों की सरसराहट या कि गुनगुनाई हवा
उस अनसुनी आवाज़ को सुनाने का गुमाँ सा हुआ
उसका ही था वजूद, चारों तरफ था उसका ही सरमाया
हम ही थे भरम में या कि तुमने था हमें भरमाया
इक तपिश थी, कशिश थी, कुछ शोखी , कुछ अठखेलियाँ
हर बार कुछ जुदा सा लगा, जब-जब मुखातिब वो आया
हवाओं पे लिख के , मौसम के हाथ भेजी थी चिट्ठियां
अब तक है इंतज़ार, जवाब अब आया कि तब आया.