Sunday, 4 August 2019

तीन तलाक़

तलाक़! तलाक़!! तलाक़!!!
इतनी ही स्पष्टता और दृढ़ता से कहे गए थे
वे शब्द
गुडबाय फ़ॉर एवर!!!
और उसका मानो वक़्त वहीं थम गया।
प्यार का अभिमान ओढ़े
कुछ देर वहीं खड़ी सोचती रही वो
नहीं, ये शब्द उसके लिए नहीं थे ...
प्यार ऐसे नहीं तोड़ा जाता ...
शायद कुछ और ही होगा यह
शायद गुस्सा, या मज़ाक
पर वो नहीं रुका
न उसके आवाज़ लगाने पर मुड़ा।
 बेतहाशा वो दौड़ी ...
उसकी राह रोक
गिर पड़ी घुटनों पर ...
लाख मिन्नतों पर 
उसने पूरे अहसान के साथ
औरत की गलतियों की फेहरिश्त गिनवाते हुए
उसे माफ़ किया गया
और प्यार के अहसान से नवाज़ा गया...
अब दोबारा निकाह के लिए हलाला भी तो ज़रूरी था
तो हो गया
देह का नहीं
आत्म सम्मान का हलाला
प्यार के अभिमान का हलाला ।
अब प्यार की ज़िंदा लाश को दिल में उठाए
वो औरत प्यार की वापसी का जश्न मनाए
या हलाली का ग़म ???

दौर ए उदासी

दौर ए उदासी से खुद को बचा रही हूँ।
बैठे-बैठे बेवज़ह ही मुस्कुरा रही हूँ।

दिल के पास जाने दिमाग क्यों नहीं,
दिल की नादानियों पे पछता रही हूँ।

समझना होगा तो खुद ही समझ जाएगा,
नासमझ को जाने क्यों समझा रही हूँ।

ग़म पोश ज़िन्दगी में है खुशी कहाँ छिपी
नक़ाब दर नकाब मैं उठा रही हूँ।

शीशे के ख़ाब टूट के पलकों में जा चुभे,
किरच-किरच बीन फिर-से सजा रही हूँ।
 Shalini Rastogi

बस इतना सा अफ़साना

बस इतनी देर का ही था अफ़साना।
मेरा आना हुआ और उसका जाना।

नज़र की बात थी, नज़र ने समझी,
दिल ने दे दिया सुकूँ बतौर नज़राना।

बात अपने आप में ही थी मुक्कमल,
क्या समझते और किसे था समझाना।

रोज़ आने का वादा किया था उसने,
वो न आया कि रोज़ आया रोज़ाना।

फ़र्क कुछ तो रहा होगा कहने-सुनने में,
'दास्तां खत्म हुई' जो पड़ा ये भी बतलाना।




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