कुण्डलिया
सावन संग आज लगी, सखी नैन की होड़|
मान हार कौन अपनी, देत बरसना छोड़||
देत बरसना छोड़, नैन परनार बहे हैं |
कंचुकि पट भी भीज , विरह की गाथ कहे हैं ||
पड़े विरह की धूप, जले है विरहन का मन|
हिय से उठे उसाँस, बरसे नैन से सावन ||