अनुभव होता है आजकल
देह का प्राण से विलग होना
बड़ी ही जटिल है .. यह प्रक्रिया
आखिर रोम-रोम हम बंधे हैं साथ
हर बंध टूटने का अहसास
तड़पा देता है
कर देता विह्वल
हर साँस देह में अटक कर
कुछ और रुक जाना चाहे है
थाम लेना चाहती है देह
प्राणों के संसर्ग को
कुछ और पल .... कुछ और क्षण
जैसे तुम्हारे कदमों से बंधे हैं
मेरी साँसों के धागे
दूर जाता तुम्हारा हर कदम
क्षीण कर जाता जीवन की आस
आखिर .. मैं देह , तुम प्राण !