अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
सवैया ( सुंदरी ) सगण x 8 + 1 गुरु हर रोज़ सुनाय कथा नव साजन, रोज़ करै नव एक बहाना| सखि हार गई अब तो उनते, कह झूठन का कित कोय ठिकाना | पल में फिरि जाय न याद रखे, कब जानत है वह बात निभाना | अभिसार किये नित राह तकूँ, वह जानत सौतन सेज सजाना ||