अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
जमी हुई थी हिमनद सीने में बर्फ़ ही बर्फ़ न कोई सरगोशी .. न हलचल सब कुछ शांत, स्थिर, अविचल फिर आए तुम स्पर्श कर मन को अपने प्रेम की ऊष्मा मेरे ह्रदय में व्याप्त कर गए बूँद बूँद पिघल उठी मैं बह निकली नदी सी मैं बर्फ से गंगा बनी मैं
अजीब विरोधाभास है ~~~~~~~~~~~~~ रिक्तता का अहसास कितना भारी कर देता है मन कभी मन के किसी कोने में किसी की आहट सुनने को कुछ सुगबुगाहट सुनने को भटकते, टकराते फिरते अपने ही मन की दीवारों से पर भरी होती है वहां हर ओर सिर्फ रिक्तता ~~~~~~ है न
अदाकारा होती है छिपी हर औरत के मन की तहों में, गाहे-बेगाहे उभर आती है कभी भी सामने दुनिया के जब अंतर्मन की पीड़ा को पी कर मुस्कुराती है उसकी खुशहाली पर माँ उसकी वारी-वारी जाती है दर्द, अपमान, पीड़ा, अवहेलना की बारीक लकीरों को कितनी खूबसूरती से वह व्यस्तता के अभिनय से छिपाती है. आँखों में औचक भर आये आंसुओं को आँख में कुछ गिर जाने के बहाने से , रुंधे हुए गले की बैठी हुई आवाज़ खांसी के पीछे छिपाने में रात तकरार के बाद गाल पर छपे उँगलियों के निशान मेकअप के नीचे छिपाती वो हँसतीहै, खिलखिलाती है चाहे जितने भी निभाए रिश्ते पर सब पर हावी रहती है वो छिपी हुई अदाकारा ~~~~~~~~~~~ shalini rastogi
हर बार ज़रूरी नहीं होता वज़ह पूछी जाए कभी कयास लगाना ही बेहतर होता है कि बात करते करते अचानक कोई चुप हो गया था क्यों साथ चलते कदम अचानक ठिठक के रुक गए थे क्यों क्या सोचा होगा उसने जो आँख यूँ भर आई होगी एक नामालूम सी मुस्कराहट के पीछे याद किसकी छिपाई होगी क्या हुआ कि रस्ते बदल गए होंगे कब, कैसे, कहाँ तार रिश्तों के नए जुड़ गए होंगे वज़ह पूछोगे तो बेवज़ह बात बढ़ जाएगी राख के ढेर में छिपी चिंगारी कुरेदने से भड़क जायेगी वज़ह के पीछे छिपा जवाब तुम्हारे ख्यालों से मेल खाए क्या पता वो तसव्वुर को चकनाचूर कर जाए तो अपने ख़्वाबों,ख्यालों,तसव्वुर को सहलाते रहिए वज़ह पूछने से बेहतर है ...कयास लगाते रहिए ~~~~~~~~~~ shalini rastogi