रक्त कली से अधर द्वय,दरसत मन न अघात ||
3
आकुल हिय की व्याकुलता, दिखा रहे हैं नैन|
प्रियतम नहीं समीप जब, आवे कैसे चैन||
4.
मानव प्रभु से पाय के, मनुज देह अनमोल |
सजा सुकर्मों से इसे, सोने से मत तोल ||
5.
ह्रदय अश्व की है अजब , तिर्यक सी ये चाल
विचार वल्गा थाम के, साधो जी हर हाल ||
6.
मात पिता दोनों चले , सुबह छोड़ घर द्वार |
बालक नौकर के निकट, सीखे क्या संस्कार ||
7.
चिंतन मथनी से करें , मन का मंथन नित्य |
पावन बनें विचार तब , निर्मल होवें कृत्य ||
8.
इज्ज़त पर हमला कहीं, कहीं कोख में वार |
मत आना तू लाडली, लोग यहाँ खूंखार ||
9.
बन कर शिक्षा रह गई, आज एक व्यापार |
ग्राहक बच्चे हैं बने, विद्यालय बाज़ार ||
10.
इधर बरसते मेघ तो , उधर बरसते नैन |
इस जल बुझती प्यास औ, उस जल जलता चैन ||
11.
सावन आते सज गई , झूलों से हर डाल|
पिया गए परदेस हैं, गोरी हाल बेहाल ||
12
कोयल कूके बाग़ में, हिय में उठती हूक |
सुन संदेसा नैन का, बैन रहेंगे मूक ||
13.
संस्कृति जड़ इंसान की, रखें इसे सर-माथ |
पौधा तब तक है बढ़े, जब तक जड़ दे साथ ||
14.
नाजुक-सी है चीज़ ये , ग़र आ जाए खोट |
जीभ तेज़ तलवार सी, करे मर्म पर चोट ||
15.
रखा गर्भ में माह नौ , दिए देह औ प्रान |
वो माँ घर में अब पड़ी, ज्यों टूटा सामान ||
16
संग निभाने हैं हमें , कर्त्तव्य व अधिकार |
हो स्वतंत्रता का तभी, स्वप्न पूर्ण साकार ||
17
नारी धुरी समाज की, जीवन का आधार |
डूब जायगी सभ्यता, बिन नारी मझधार ||
18
ऊपर बातें त्याग की, मन में इनके खोट |
दुनिया को उपदेश दें , आप कमाएँ नोट ||
19.
नैनन अश्रु धार ढरै, हिय से उठती भाप|
दिन के ढलते आस ढले, रात चढ़े तन ताप||
20.
कर्म देख इंसान के , सोच रहा हैवान|
काहे को इंसानियत, खुद पे करे गुमान ||
21.
कोसे अपनी कोख को , माता करे विलाप |
ऐसा जना कपूत क्यों, घोर किया है पाप ||
22.
अपनी संस्कृति सभ्यता, लोग रहे हैं छोड़ |
हर कोई है कर रहा , पश्चिम की ही होड़ ||
23
धरती माँ की कोख में, पनप रही थी आस |
अग्नि बन नभ से बरसा, इंद्रदेव का त्रास ||
24
व्याकुल हो इक बूँद को, ताके कभी आकास|
कभी बरसते मेह से, टूटे सारी आस ||