बेतरतीब है, बिखरी सी पड़ी है हयात,
चलो आज इसको करीने से सजाया जाए.
घर की हरेक चीज़, हर कोने में फैली हुई हैं यादें तेरी,
दिल की दीवारों पे इन्हें , सिलसिलाबार सजाया जाए.
जिस्म से रूह तलक, गोशे-गोशे पर छपी हैं बातें,
हर्फ-ब-हर्फ़ चुन-चुन के एक अफसाना बनाया जाए.
वो तेरी हर बात जो, दिल को नाग़वार गुज़री,
उन्हीं बातों से आज, अपने शेरों को सजाया जाए .
कहाँ तक संजोते रहें ग़मों को, जो बख्शे तूने ,
उन ग़मों को आज सीने में, अपने दफनाया जाए.
बस्ल-ए-तन्हाई में है कौन, किससे गुफ्तगू करलें.
तन्हाइयों को भी आज, शोर सन्नाटे का सुनाया जाए.
रू-ब-रू आ, कि आँख मुंदने तक तेरा दीदार करें,
नज़र की तिश्नगी को तेरे दीदार से बुझाया जाए.
थम-सी गई है रफ़्तार-ए-जिंदगी, कि मौत दूर खड़ी,
पैगाम जल्द आने का ,कासिद के हाथों भिजवाया जाए.
मुलाक़ात जब भी हो खुद से, कोई गैर जान पड़ता है,
गैरों से पेशतर खुद को, अपना दोस्त बनाया जाए .
कुछ कमी सी है फिज़ा में, कि राग-ए-गुल फीके हैं ,
खून-ए-जिगर देके फूलों को रंगीन बनाया जाए .