Tuesday, 23 February 2016

जाने किस बहकावे में

जाने किस बहकावे में आकर
उर्वरा धरती को
चढ़ी है जिद
साबित करने की खुद को ऊसर
अपनी हरियाई कोख को
पीट- पीट कर रही विलाप
अकूत सम्पदा को आँचल में छिपाए
आँखों में आँसू, होंठों पर गुहार लिए
मांगती फिर रही
अनाज के दो दाने
आक्रोश से फटी पड़ती है
कि भीतर के लावे से
सब कुछ ख़ाक कर देने को आतुर
वीर प्रसविनी आज
भक्ष रही निज पूतों को
जाने किस बहकावे में
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शालिनी रस्तौगी

त्रिवेणी


बहुत मुश्किल रहा तोड़ना दीवारें भरम की।
कितने जतन से खुद, चिना था हमने जिन्हें ।
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सच है कि अपनी कैद से रिहाई आसाँ नहीं होती।

2.
दिमाग का सुकूँ देके , जिस्म का आराम खरीदा है।
पैसों के एवज रूह बेच, जी का जंजाल खरीदा है
.............
जाने क्यों घाटे की तिजारत में लगी है दुनिया ?

3.
कभी झांकती हैं मन में , कभी सेंध लगाती हैं 
कहीं रहूँ मैं, हर घडी इर्द-गिर्द ही मंडराती हैं 
.......... 
जाने चोर हैं कि जासूस ... तुम्हारी आँखे

4.
यादों के कुएँ से.मशक भरने का 
रोज़गार दिमाग को दे रखा है 
..............
अजीब लम्हे हैं फुर्सत के... एक पल को खाली रहने नहीं देते

साजिश

दिशाओं ने की है साजिश
पूरब के खिलाफ़
भड़काया है बादलों को
कि मत होने दो सुबह
बहुत इतराती है ये प्राची
कि सूरज
इसके दामन से निकलता है
रोक लो रास्ता
उदित होती हर किरण का
चलो छा जाओ
कि दुनिया देख न पाए उजाला
गरजो, बरसों, बिजलियाँ गिराओ
बूँदे नहीं, धरा पर सैलाब बरसाओ
हदें तोड़ने की इजाज़त है
चाहे जहाँ तक जाओ
कि त्रस्त होगी धरती तो
पिघलेगी प्राची
शायद सफल हो जाए
सूरज को कैद करने की
दिशाओं की साजिश
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शालिनी रस्तौगी
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