जाने किस बहकावे में आकर
उर्वरा धरती को
चढ़ी है जिद
साबित करने की खुद को ऊसर
अपनी हरियाई कोख को
पीट- पीट कर रही विलाप
अकूत सम्पदा को आँचल में छिपाए
आँखों में आँसू, होंठों पर गुहार लिए
मांगती फिर रही
अनाज के दो दाने
आक्रोश से फटी पड़ती है
कि भीतर के लावे से
सब कुछ ख़ाक कर देने को आतुर
वीर प्रसविनी आज
भक्ष रही निज पूतों को
जाने किस बहकावे में
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शालिनी रस्तौगी