समय
रेत की मानिंद
हाथों से फिसल जाता है
कभी बन के पत्थर
राह में अड़ जाता है
कभी बीत जाते है सालों
ज्यों बीता हो एक पल
कभी एक पल बीतने में
सालों लगाता है
बन कभी मरहम ये
भर देता है पुराने ज़ख्म
कभी कुरेद पुराने ज़ख्मों को
ये नासूर बना जाता है
जीता वही शख्स जिसने
पा लिया इसपे काबू
वर्ना तोह यही लोगों को
अपना गुलाम बनाता है
यही वख्त कभी बढ़ के खुद
खोल देता है नई राहें
और कभी हरेक राह पर
दीवार नई उठाता है
क्यों कर ना हो मगरूर
क्यों किसी के आगे झुके
ए दोस्त हर शै को ये
सामने अपने झुकाता है
रेत की मानिंद
हाथों से फिसल जाता है
कभी बन के पत्थर
राह में अड़ जाता है
कभी बीत जाते है सालों
ज्यों बीता हो एक पल
कभी एक पल बीतने में
सालों लगाता है
बन कभी मरहम ये
भर देता है पुराने ज़ख्म
कभी कुरेद पुराने ज़ख्मों को
ये नासूर बना जाता है
जीता वही शख्स जिसने
पा लिया इसपे काबू
वर्ना तोह यही लोगों को
अपना गुलाम बनाता है
यही वख्त कभी बढ़ के खुद
खोल देता है नई राहें
और कभी हरेक राह पर
दीवार नई उठाता है
क्यों कर ना हो मगरूर
क्यों किसी के आगे झुके
ए दोस्त हर शै को ये
सामने अपने झुकाता है