जब ज़रा जिंदगी से, घबरा-सा जाए है जी
जहमत मरने की भी न, उठाना चाहे है जी
कहता है जान-ए-बबाल है जीना, जिंदगी है जंग
जिंदा रहने की जुस्तज़ू में, जान दिए जाए है जी.
जी जाएँ दो घड़ी जो जरा, जी भर तुझे देख लें
रू-ब-रू देख तुझे, हलक में आ अटक जाए है जी
जब-जब तेरा जलवा नुमाया हो, कि जुनूं में
इक-इक अदा पे तेरी, सौ बार, मरे जाए जी
हर रोज का वही रोना, वही फ़साना औ वही हम,
अपने से ही कुछ अलग, हमें देखना चाहे है जी
हज़ार जज़्बे हैं जी में, जंजाल सौ ज़माने के
खुद के ही जाल में , मकड़ी सा फँसता जाए है जी
वैसे तो जिस्म और जिस्म की ज़रूरतों से बंधा है
पोशीदगी ज़माने से चाहे , फ़कीर दिखना चाहे है जी.
सौ जन्नतों औ दो जहाँ की निअमत निसार दूं
तू समझा दे जो इक बार तो ज़रा , संभल सा जाए ये जी