Thursday, 22 December 2022

इल्लियाँ और तितलियाँ

 बेचैन हैं कुछ इल्लियाँ
तितलियाँ बन जाने को
कर रही हैं पुरज़ोर कोशिश
निकलने की
कैद से अपने कोकून की।
वे काट कर चोटियाँ,
लहरा रही हैं ,
आज़ादी का परचम।
गोलियाँ और गालियाँ खाकर भी
कर रही हैं आवाज़ बुलंद ।
वे लड़ रही हैं अँधेरे से,
हिजाब के पहरे से,
इल्म औ अना की रोशनी से,
जगमगाना चाहती हैं ,
अपना आसमाँ,
जिसमें उड़ सकें वे ,
अपने रंगबिरंगे पंख फैलाए,
बेख़ौफ़।
हाँ, अब तितलियाँ बन जाना चाहती हैं,
कुछ इल्लियाँ।
वहीं बेचैन हैं कुछ तितलियाँ ,
फिर से इल्लियाँ बन जाने को।
वे खुद पोत रही हैं,
जहालत और ज़िल्लत की स्याही
अपने रंगीन पंखों पर।
वे गुम हो जाना चाहती हैं फिर
ग़ुलामी के गुमनाम गलियारों में,
दफ़न हो जाना चाहती हैं
कट्टरता के मकबरों में ,
फिर तान लिए उन्होंने
हिजाब के काले शामियाने
खुले आसमानों तले,
वो फिर अपने परों को समेट,
अपने कोकून में घुस
इललियाँ बन जाना चाहती हैं ..... कुछ तितालियाँ।
~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी

औरत की कहानी

 औरत की कहानी


~~~~~~~~~
एक औरत ने,
औरतों के लिए ,
एक औरत की कहानी लिखी |
कुछ आशाएँ, थोड़े सपने, कुछ बेगाने, थोड़े अपने
धड़कती छतियाँ, अकेली रतियाँ, अधूरी बतियाँ , कुछ प्रेम की पतियाँ ,
ख्वाहिशें जानी-पहचानी सी कुछ, कुछ थीं जो अनजानी लिखीं|
एक औरत ने, औरतों के लिए, एक औरत की कहानी लिखी.... कुछ बचपन के उल्लास बिखेरे,
कुछ यौवन के अनुराग उकेरे,
थोड़े प्रौढ़ हुए - से सपने, कुछ किशोर नादानी लिखी |
कभी न बीता जो बचपन, पल में बीती वो जवानी लिखी |
एक औरत ने, औरतों के लिए, एक औरत की कहानी लिखी ....

हँसते होंठो के पीछे उदासी की परत ,
पनीली आँखों के सपनों की झलक ,
लहराती लटों में रातों की स्याही
कहीं जुल्फों पर जो, चाँदी थी उतर आई ,
रंगत आबनूसी, कहीं सुनहरी – रुपहली - आसमानी लिखी |
कहीं तरुणाई की चमक , तो कहीं झुर्रियों भरी पेशानी लिखी |
एक औरत ने, औरतों के लिए, एक औरत की कहानी लिखी ......

आटे गूँधते गूँधी गई संग ख्वाहिशें,
रोटी की संग आँच पर सुंध महक उठीं चाहतें,
बुहारी लगाते बुहार दीं जो, मन से बाहर हसरतें,
ऊन से सलाइयों पर, ख़्वाबों की उतरीं बुनावटें ,
मसरूफियत का खालीपन , बेचैनियों की इत्मिनानी लिखी
जो कही नहीं थी कभी किसी से, उस बात की तर्जुमानी लिखी |
एक औरत ने, औरतों के लिए, एक औरत की कहानी लिखी ......

बखूबी निभाए जा रहे रिश्तों का खोया अपनापन,
फ़र्ज़ का निभाव करते, मन में उतरा सूनापन,
करवट बदलती रात में, मीठी नींद का ख्वाब,
अपने घर में, अपने लिए एक कोने की तलाश ,
सर्वस्व समर्पण का सुकून, सब खोने की परेशानी लिखी|
कहीं मुश्किलों की इबारतें, कहीं चैन – आसानी लिखी|
एक औरत ने, औरतों के लिए, एक औरत की कहानी लिखी ......
~~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी

उलझन

 मैं उलझी हूँ सुलझाने में

उलझे से ताने-बाने में,
ये दुनिया या वो दुनिया
गुत्थी समझ न पाने में।
गुथ चुके सिरे आपस में यूँ
ओर-छोर न मिल पाए
कैसे बुन पाऊँ प्रेम चदरिया
रास्ता कोई तो दिखलाए,
दो दुनियाओं के बीच फँसी,
दुविधा में कैसी आन पड़ी,
न इस जग में रह पाने में,
न उस जग में जा पाने में।
अज्ञात खींचता धागा तो
ढीले पड़ते दुनियावी धागे
दुनिया के धागे तानूँ तो
टूटे जाते उससे नाते,
यहाँ वहाँ, इसके - उसके
गुच्छों को सुलझाने में,
उस तक जाऊँ तो जग छूटे
जग को चाहूँ तो वो रूठे,
किससे जोड़ूँ, किससे तोड़ूँ
किसको पाऊँ , किसको छोडूँ
कैसे दो जग के तार जुड़ें,
ये समझने में, समझाने में
~~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी

बस पन्ने भर लेने से

 

बस पन्ने भर लेने से क्या, भरेगा मन का खालीपन,
क्या बाहर का शोर, मिटा, सकता अंतर का सूनापन|
 
व्यंग्य चमकता हो आँखों में, उपहास छिपा हो लहजे में,
लब पर बोल प्रशंसा के क्या, ढक पाएँगे ये जालीपन |
 
साज-सँभाल-सुधार रहा है, जिसको देखो औरों को,
दूजों को सम्पूर्ण बनाने, निकल पड़ा अधूरापन|
 
मानवता का मोल लग रहा, भाव बकें बाजारों में,
इश्क-मुहब्बत-प्यार खोजता, देखो तो दिल का पागलपन |
 
हालात और माहौल बदल देते हैं सबकी फितरत को,
सागर से मिल नदिया, खो मिठास बन गई खारापन |
 
नकलीपन की आदत इतनी, पड़ गई है इंसानों को,
रास कहाँ आएगा उनको, गुल-उपवन का ताज़ापन |
 
हर एक घिरा है अपनी ही, मजबूरी के बोझ तले,
किससे दुखड़े मन के बाँटें, कम करने को भारीपन |
 
चाँदी की ये झलक लटों में, राज़ उम्र के देती खोल,
अब तो ढंग की बातें कर लो, करोगे कब तक बच्चापन|
 
प्रजातंत्र मज़ाक बन गया सत्ता के गलियारों में,
जब-जब झूठ के शोर के आगे, सच ने धारा गूँगापन|
द्वारा
शालिनी रस्तौगी
गुरुग्राम

22/12/2022

जाने क्यों एकाकी मैं?

 


जाने क्यों एकाकी मैं?

जीवन की इस भीड़-भाड़ में,

रेलमपेल औ भाग-दौड़ में,

कहीं बची न बाकी मैं|

जाने क्यों एकाकी मैं?

साँझ ढले जब वज़्म सजे,

प्याले दर प्याले दौर चले,

कहीं दर्द में भीगी-भीगी शायरी,

कहीं सुर-लय-ताल से ग़ज़ल सजे|

कभी रेत कभी शबनम बन बिखरे,

जज्बातों से अल्फाज़ सजे |

कहीं मय छलके, कहीं अश्क़ बहे,

हँसी, ठहाके, आँसू पीड़ा,

सब हुए शराबी बहके-बहके|

पर अपनी मधुशाला में,

मय, मीना न साक़ी मैं !

सुबह-शाम-दिन-दोपहरी,

जाने क्यों एकाकी मैं?

~~~~~~~~

शालिनी रस्तौगी

22/12/2022

बेकार की बातें

काम की बातें ,
अक्सर कर देती हैं बोझिल ...
मन और माहौल को
तो चलो,
फिर कुछ बेकाम-बेकार सी बात करते हैं
किसी बात पर, बेबात ठहाके लगाते हैं,
किसी बात पर होंठ दबाकर मुस्कुराते हैं
कुछ अटपटी बातों को
खट्टी-मीठी गोली की तरह
मुँह में घुमाते हुए
चटकारे लगा खुलकर खिलखिलाते हैं...।
सारे दिन की थकन से,
बेमतलब-सी अनबन से
किसी की बात के कसैलेपन से
जो घुल गई है मुँह में कड़वाहट
चूरन-सी चटपटी बातों के चटाखे लगा
कसैलापन भुलाते हैं।
बातों के गोलगप्पों में ,
मज़ाक की चटनी लगा,
चटपटे चुटकुलों का पानी भर
आज बातों के चटोरे बन जाते हैं।
चलो दोस्त
कुछ बेकार की बातें बनाते हैं💝😘
~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी
12/12/22
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Sunday, 11 December 2022

प्रेम कहानियाँ

 मैं प्रेम कहानियाँ सुनाती हूँ

सुनोगे .......?
हर तरह की प्रेम कहानियाँ हैं मेरे पास
बताओ, किस तरह की कहानियाँ पसंद हैं तुम्हें?
लैला-मजनू, हीर-राँझा, शीरी-फरहाद
बताओ, क्या सुनाऊँ
शुरू से आख़िर तक, हरेक कहानी
याद है मुझे मुँह-ज़ुबानी
क्या कहा? ... ये सभी कहानियाँ है आधी-अधूरी
आँसू, कसक, आहें, तड़प ,
कभी न मिल पाने की इनमें छिपी मजबूरी|
अरे जनाब! अधूरी हैं, तभी तो हैं प्रेम कहानियाँ !
मुकम्मल हो जातीं तो न बचता प्रेम, न बचती ये कहानियाँ|
चलो फिर, सफ़ेद संगेमरमर के मकबरे में,
चाँदनी की शीतल चादर में लिपटी प्रेमकथा सुनोगे ?
प्रेम ... और उस कथा में ... रहने भी दो !
असलियत का के आफ़ताब में सच्चाई को देखो ..
उफ्फ, बहुत डिमांडिंग हो तुम तो ...
चलो छोडो पुराने किस्से, कुछ नई कहानियाँ भी हैं मेरे पास
ऐसी कहानियाँ .. जिन्हें बड़े सँभालकर,
टुकड़ों-टुकड़ों में काट, पोलीथिन में लपेट
बर्फ की तहों में जमाया गया है|
कहीं तालाबों की गहराइयों में छिपाया,
कहीं तन्दूरों में सुलगाया,
कहीं पेड़ों पर लटकाया गया है|
जंगल-जंगल बिखेरा है, टुकडे-टुकड़े प्रेम,
तो देख रहे हो ना,
हर जगह है प्रेम ....
आखिर कुछ भी हो
कमी नहीं पड़नी चाहिए प्रेम की
जगलों में बिखरे उन टुकड़ों को चुनकर
मैं हर उस रिसते, गलते, जलते, गंधाते टुकड़े से
पूछती हूँ उसके प्रेम के किस्से
आखिर, सुनानी हैं जो तुम्हें
प्रेम कहानियाँ ....
~~~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी
11/12/22
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