आ जाओ रू-ब-रू एक बार कि तेरा दीदार फिर कर लें
दिल के सहरा पे बरसो, कि फिर बहार हम कर लें
नज़रों से पी जाएँ तुझे कि रूह में उतार लें
प्यास एक उम्र की तमाम हम कर लें
छिपाए नहीं छिपता ये दर्द अब इन आँखों में
बरस कर सावन को आज , शर्मसार हम कर दें
मुतमईन रह कि राज़, ना जान पायेगा कोई
रुसवा न हो तू कि बदनामी, सरसाज हम कर लें