कभी- कभी ,
बहुत कुछ कहने की कोशिश में
सब कुछ कर देते
बर्बाद
ये मेरे अल्फ़ाज़
जहाँ ज़रुरत भी नहीं इनकी
जो बयाँ कर पाना
हैसियत भी नहीं इनकी
क्यों हदें भूल अपनी
करना चाहते
फिर वही बार-बार
ये मेरे अल्फाज़
लफ़्ज़ों में नहीं बँधते
जो बसे सिर्फ तस्सव्वुर में
हवा से भी शोख
तितलियों से भी रंगीन
खुशबू की तरह फिज़ा में घुलते
जज्बातों को
क्यों बाँध लेना चाहते
बार-बार
ये मेरे अल्फ़ाज़
बेअक्ल हैं ये
नासमझ
क्यों नहीं समझते
अल्फाजों में बंधते ही,
जज़्बात
बन जाते हैं
सारे जहां की जागीर
मल्कियत उन पे फिर खुद की
रह पाती कहाँ
जिसका जो दिल करे
वही मतलब निकालता है
हर कोई अपने-अपने
हिसाब से उन्हें बाँचता है
कमान से छूटे तीर से
फिर वापस कहाँ आ पाते
दिल के तरकश में
बिना करे वार
ये मेरे अल्फाज़
बहुत कुछ कहने की कोशिश में
सब कुछ कर देते
बर्बाद
ये मेरे अल्फ़ाज़
जहाँ ज़रुरत भी नहीं इनकी
जो बयाँ कर पाना
हैसियत भी नहीं इनकी
क्यों हदें भूल अपनी
करना चाहते
फिर वही बार-बार
ये मेरे अल्फाज़
लफ़्ज़ों में नहीं बँधते
जो बसे सिर्फ तस्सव्वुर में
हवा से भी शोख
तितलियों से भी रंगीन
खुशबू की तरह फिज़ा में घुलते
जज्बातों को
क्यों बाँध लेना चाहते
बार-बार
ये मेरे अल्फ़ाज़
बेअक्ल हैं ये
नासमझ
क्यों नहीं समझते
अल्फाजों में बंधते ही,
जज़्बात
बन जाते हैं
सारे जहां की जागीर
मल्कियत उन पे फिर खुद की
रह पाती कहाँ
जिसका जो दिल करे
वही मतलब निकालता है
हर कोई अपने-अपने
हिसाब से उन्हें बाँचता है
कमान से छूटे तीर से
फिर वापस कहाँ आ पाते
दिल के तरकश में
बिना करे वार
ये मेरे अल्फाज़
बेअक्ल हैं ये
ReplyDeleteनासमझ
क्यों नहीं समझते
अल्फाजों में बंधते ही,
जज़्बात
बन जाते हैं
सारे जहां की जागीर
यह पंक्तियाँ विशेष अच्छी लगीं।
सादर
bahut ,bahut hi pyaari rachna hai,bdhaai aap ko
ReplyDeleteयशवंत जी,
ReplyDeleteखूबसूरत अलफ़ाज़...............
superb abhivyakti .bilkul apni si lagtihue
ReplyDeleteशालिनी जी,
ReplyDeleteखूबसूरत अलफ़ाज़...............
पढते ही ऐसा लगा मानो मेरे ही जज़्बातों से भींगे हुए हैं ये अल्फाज़........ सचमुच बिलकुल ऐसा ही ख्याल मेरे भी मन में अक्सर आया करता है....
ReplyDeleteखुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....शानदार |
ReplyDeleteअच्छे भाव है रचना के...
ReplyDelete"बेअक्ल हैं ये
ReplyDeleteनासमझ
क्यों नहीं समझते
अल्फाजों में बंधते ही,
जज़्बात
बन जाते हैं
सारे जहां की जागीर"
क्या खूब कहा है शालिनी मैम ! बेहतरीन !
आप सभी का बहुत - बहुत धन्यवाद @यशवंत जी, अवंति जी , रोली जी, नीलिमा शर्मा जी,सुषमा जी,कल्पना जी,विद्या जी एवं सुशीला जी ...... आप सभी के स्नेह के लिए हार्दिक आभार!
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteActive Life Blog
dhanyvaad sir!!
Deleteक्यों नहीं समझते
ReplyDeleteअल्फाजों में बंधते ही,
जज़्बात
बन जाते हैं
सारे जहां की जागीर
लग रहा है जैसे आपने मेरे मन की बात कह दी ...या कहूं सबके मनकी बात कह दी .....सहज सुन्दर प्रस्तुति
धन्यवाद सरस जी, बस यूँ कहिये कि मन से मन को राह होती है ...... आभार!
Deleteकमान से छूटे तीर से
ReplyDeleteफिर वापस कहाँ आ पाते
दिल के तरकश में
बिना करे वार
ये मेरे अल्फाज़
bahut badhiyaa
धन्यवाद रश्मि जी,
Deleteबेअक्ल हैं ये
ReplyDeleteनासमझ
क्यों नहीं समझते
अल्फाजों में बंधते ही,
जज़्बात
बन जाते हैं
सारे जहां की जागीर
मल्कियत उन पे फिर खुद की
रह पाती कहाँ
जिसका जो दिल करे
वही मतलब निकालता है
हर कोई अपने-अपने
हिसाब से उन्हें बाँचता है
बेहतरीन और लाजवाब ।
बहुत बहुत शुक्रिया, इमरान जी ! बस यूँ ही हौंसला अफजाई करते रहिये.... आभार !
Deleteकल 03/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
हलचल में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार, यशवंत जी !
Delete'जज्बातों को
ReplyDeleteक्यों बाँध लेना चाहते
बार-बार
ये मेरे अल्फ़ाज़'
अभिव्यक्ति और सृजन के बीज का चित्र. बहुत सुंदर लिखा है.
बहुत बहुत धन्यवाद भूषण जी !
Deleteबेअक्ल हैं ये
ReplyDeleteनासमझ
क्यों नहीं समझते
अल्फाजों में बंधते ही,
जज़्बात
बन जाते हैं
सारे जहां की जागीर
खूबसूरत भाव उकेरे है आपने कविता में...
बेहतरीन..
धन्यवाद .... जी !
Deleteकमान से छूटे तीर से
ReplyDeleteफिर वापस कहाँ आ पाते
दिल के तरकश में
बिना करे वार
ये मेरे अल्फाज़...........bahut sahi kaha aapne
धन्यवाद उपासना जी,
Deleteजहाँ ज़रुरत भी नहीं इनकी
ReplyDeleteजो बयाँ कर पाना
हैसियत भी नहीं इनकी
क्यों हदें भूल अपनी
करना चाहते
फिर वही बार-बार
ये मेरे अल्फाज़
behtreen bahvo ke saath behtreen post
धन्यवाद अमरेंदर जी !
Deleteसुन्दर अल्फाजों के साथ सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteआभार !
धन्यवाद मनीष!
Deleteअल्फ़ाज़ों का सार्थक विश्लेषण .... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteअलफाज के बाद की कसक ... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी !
Deleteखूबसूरत अलफ़ाज़.की कसक.के साथ सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteआभार !.............
धन्यवाद संगीता जी,
Deleteकमान से छूटे तीर से
ReplyDeleteफिर वापस कहाँ आ पाते
दिल के तरकश में
बिना करे वार
ये मेरे अल्फाज़
rachana ka ant behad khoob soorat laga ....badhai shalini ji.
धन्यवाद नवीन जी!
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