इस मोड़ से इक राह भी गुजरती तो है
दिल से तेरे हम तक जो पहुँचती तो है .
किस्मत तो किस्मत है, यकीं न इस पे करना
किस्मत हरेक की नए रंग बदलती तो है
सिर लाख कुचलो दिल में उठती हसरतों का पर
हसरत नई हर रोज़ ही मचलती तो है
कूँचा ए मैकदे से गुज़ारना संभल के तुम
गुजरो इधर से जब नीयत बहकती तो है .
लाचारियों की राख के अन्दर दबी हुई
आक्रोश की इक चिंगारी सुलगती तो है
इन्तेहा जुल्मों की ये देख अपनी जात पे
भीतर ही भीतर ये जमीं दहलती तो है .
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शालिनी रस्तौगी
(चित्र गूगल से साभार)
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शालिनी रस्तौगी
(चित्र गूगल से साभार)