ये मशाल न बुझने देना
मंजिल नहीं ये एक कदम है
दूर लक्ष्य और जटिल डगर है
थक कर रुकना अभी नहीं संभव है
दूर गगन छूने से पहले
ये परवाज़ न रुकने देना
युगों तक छाये घोर तिमिर की
लंबी काली अमावस रात्रि
मानस को कर चुकी ग्रसित है
जो सुलगी है इस निशा नाश को
ये मशाल न बुझने देना
आज चले जो कदम अनगिनत
कोटि कंठों से फूटी स्वरधारा
हर दिल से अब गूँज रहा है
वन्दे मातरम का ही नारा
ये इन्कलाब न दबने देना
पूर्ण परिवर्तन के वास्ते,
जन प्रतिकार अभी चाहिए.
करने को संधान लक्ष्य का,
सतत तपस्या अभी चाहिए.
जब आग न पूरी भड़के ,
चिंगारी मद्धम न होने देना.
ये मशाल न बुझने देना