हाँ, सही कहा कि
ग़र करती हो तो पछताती हो क्यों...?
अपने पहनावे पर
लोगों के व्यंग्यबाण सुन
तुम शर्म से गढ़ जाती हो क्यों...?
तुम्हारे कपड़ों की लंबाई देख
तुम्हें करैक्टर सर्टिफिकेट देने वालों की
बातों से तुम घबराती हो क्यों?
पछतावा तो हो उन आंखों को
जो कभी तीर, कभी भाले बन
तुम्हारे ज़िस्म में उतर जाती हैं।
पछतावा हो उस बेगैरत नज़र को
जो स्कैनर बन, तुम्हारे लिबास के भीतर
एक देह की कल्पना मात्र से
लार टपकाने, कभी लपलपाने लगती है।
पछतावा हो उस तथाकथित सभ्यता को
जहां अँधेरा होते ही
मर्दाना ज़िस्म पहने कुछ इंसान
जनाने जिस्मों-गोश्त की बू सूँघते,
वहशी दरिंदे बन घूमते हैं।
हाँ, तुम्हारे छोटे कपड़े, पारदर्शी लिबास ,
भड़काते हैं उन्हें।
पर
किसी घर के पालने में सोई, कहीं स्कूल जाती
गली और पार्कों में खेलती
वे छोटी-छोटी अबोध बच्चियाँ
क्या दिखा कर उत्तेजित करती हैं उन्हें?
प्रौढ़ और वृद्ध स्त्रियों के
झुर्रियों से भरे ज़िस्म
कैसे उनके अवयवों में रक्त संचार बढ़ा देते हैं?
कैसे फटे-चीथड़े पहने,
धूल-मिट्टी से अटी देह और बिखरे बाल लिए
विक्षिप्ता हामिला हो जाती है?
तो , तुम ही क्यों पछताती हो
कि तुम्हारा लिबास उकसाता है उन्हें
दोष तो उनका है जिन्हें औरत में
एक इंसान नहीं
सिर्फ ज़िस्म नज़र आता है।
ग़र करती हो तो पछताती हो क्यों...?
अपने पहनावे पर
लोगों के व्यंग्यबाण सुन
तुम शर्म से गढ़ जाती हो क्यों...?
तुम्हारे कपड़ों की लंबाई देख
तुम्हें करैक्टर सर्टिफिकेट देने वालों की
बातों से तुम घबराती हो क्यों?
पछतावा तो हो उन आंखों को
जो कभी तीर, कभी भाले बन
तुम्हारे ज़िस्म में उतर जाती हैं।
पछतावा हो उस बेगैरत नज़र को
जो स्कैनर बन, तुम्हारे लिबास के भीतर
एक देह की कल्पना मात्र से
लार टपकाने, कभी लपलपाने लगती है।
पछतावा हो उस तथाकथित सभ्यता को
जहां अँधेरा होते ही
मर्दाना ज़िस्म पहने कुछ इंसान
जनाने जिस्मों-गोश्त की बू सूँघते,
वहशी दरिंदे बन घूमते हैं।
हाँ, तुम्हारे छोटे कपड़े, पारदर्शी लिबास ,
भड़काते हैं उन्हें।
पर
किसी घर के पालने में सोई, कहीं स्कूल जाती
गली और पार्कों में खेलती
वे छोटी-छोटी अबोध बच्चियाँ
क्या दिखा कर उत्तेजित करती हैं उन्हें?
प्रौढ़ और वृद्ध स्त्रियों के
झुर्रियों से भरे ज़िस्म
कैसे उनके अवयवों में रक्त संचार बढ़ा देते हैं?
कैसे फटे-चीथड़े पहने,
धूल-मिट्टी से अटी देह और बिखरे बाल लिए
विक्षिप्ता हामिला हो जाती है?
तो , तुम ही क्यों पछताती हो
कि तुम्हारा लिबास उकसाता है उन्हें
दोष तो उनका है जिन्हें औरत में
एक इंसान नहीं
सिर्फ ज़िस्म नज़र आता है।