आज सुबह
गुनगुनी धूप की
नरम चादर लपेट
पड़ी रही न जाने कब तक
तेरी यादों की आगोश में
दिल को मिलता रहा
गुनगुना सा
सुकून
बारिश की
पहली बूँद की
गीली सी छुअन
गालों पर
थरथरा से गए अहसास
याद आ गई तुम्हारी
वो अहसासों से भीगी
पहली छुअन
फिज़ा में उड़ते
कोहरे ने
समेट लिया मेरा वज़ूद
अपने आगोश में
साँसों से दिल तक उतर गई
कोहरे की कोरी खुशबू
पुलक उठी मैं जैसे
पाकर तेरे बदन की
महक
ये तेरा ज़िक्र है...या इत्र है... :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर! वो पहला-पहला खूबसूरत एहसास....
~सादर!!!
बहुत बहुत शुक्रिया अनिता जी!
Deleteबहुत खुबसूरत कोमल अहसास और सुंदर शब्द संयोजन, अभिव्यक्ति बधाई
ReplyDeleteहार्दिक आभार सुनील जी!
Deleteबहुत ही सुंदर ...
ReplyDeleteधन्यवाद डॉ. मोनोका!
Deleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति,मौसम और प्यार की सुन्दर जुगलबंदी।
ReplyDeleteशुक्रिया राजेन्द्र जी!
Deleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल रविवार 10-फरवरी-13 को चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है.
ReplyDeleteअरुण जी, आपकी चर्चा का हिस्सा बनना , निस्संदेह मेरे लिए प्रसन्नता व गौरव का विषय है..
Deleteधन्यवाद सतीश जी!
ReplyDeleteहलचल में शामिल करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया यशवंत जी !
ReplyDeletedeepest and inbuilt feelings
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत एहसास ।
ReplyDeletebehad khoobsurat ...aapki rachna padh ke aisa laga maano ..abhi abhi ek najuk komal sa pankh hawa mei udte hue mere gaalo ko choo gaya ho ...badhai :-)
ReplyDeleteवाह, बहुत खूब
ReplyDeleteमौसम सुहाना हो जब अपनों का साथ चाहे ख्वाबों में ही सही ,बहुत कोमल अह्सासो से गुँथी शब्द माला बहुत सुंदर
ReplyDeleteहसीं ख्यालों से लबरेज़ बोलती तस्वीरों के साथ........वाह।
ReplyDeleteवाह! बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteप्यार के तराने जगे गीत गुनगुनाने लगे
फिर मिलन की ऋतू आयी भागी तन्हाई
दिल से फिर दिल का करार होने लगा
खुद ही फिर खुद से क्यों प्यार होने लगा