Saturday, 15 June 2013

क्या करूँ समर्पित

क्या करूँ समर्पित 


पितृ दिवस पर 
क्या लिखूँ, क्या करूँ समर्पित 
कैसे दूँ शब्द भावों को मन के 
मात्र बचपन की कुछ यादें नहीं तुम 
कैशोर्य का लड़कपन, यौवन का मार्गदर्शन हो .
हर कदम पर साथ चले जो 
ऐसी घनेरी, स्नेहल छाया हो तुम 
हाँ, मेरे अपने वृक्ष हो तुम 
हर ताप-संताप स्वयं सह
अपनी अमृत धारा से सरसाते 
हाँ मेरे अपने बादल हो तुम 
बचपन से अब तक , हर कदम पर 
स्थिरता दे क़दमों को मुझे संभाला 
निर्भय हो जिस पर पग रखती 
हाँ, मेरे अपने धरातल हो तुम 
क्या लिखूँ, कैसे कुछ शब्दों में 
बखान करूँ तुम्हारा 
क्या करूँ समर्पित 
पितृ दिवस पर 

Saturday, 8 June 2013

तन धूप जले


सवैया ( दुर्मिल )


सखि दोपहरी दिन ताप बढ़े, अकुलाय जिया तन धूप जले|

वन कानन भीतर जाय छिपी अब छाहन भी नित जाय छले |

मद में निज जेठ,मही जलती, सगरे जन के मन कोप खले|

घर भीतर बैठ करें बतियाँ कुछ ठंडक हो जब पंख झले||

Tuesday, 4 June 2013

विकल प्राण मेरे ..



है कोई नहीं संताप 
फिर क्यों 
विकल प्राण मेरे ..
किस अग्नि में जले आत्मा 
जब तुम हो प्राण मेरे 
आच्छादन बन  अस्तित्व तुम्हारा 
ढाँप रहा मुझ विरहन को 
फिर क्यों और कैसी व्याकुलता 
मन सुलझा दे इस उलझन को 
स्थिरता ऊपर पर भीतर
उथल पुथल प्राण मेरे 
है छद्म अरे यह विरह और 
है भ्रम ये दूरी प्रियतम से 
मन की आँखों को खोल ज़रा 
फिर हर पल उनसे संगम है 
 समझाती कितना इनको पर 
जाते क्यों न बहल प्राण मेरे 
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