जुदा मुझसे मुझे कर जो गईं आँखें
मेरी पहचान अब बन वो गईं आँखें .
मुहब्बत की कहानी कब से अटकी
रवाँ अश्कों में कर उसको गईं आँखें
न खौफ़ से जमाने के डरीं ज़रा
न डरके ये झुकीं, अड़ तो गईं आँखें
न थी दास्ताँ बड़ी आसाँ बयाँ करनी
सुनाती मुख़्तसर में जो गईं आँखें
पलक अंदाज नज़रों से हमें देखा
जिगर से रूह तक बस वो गईं आँखें
खुमारी थी,नशा था, सुर्ख डोरों में
बिना मै के , नशे में खो गईं आँखे