सावन भी सूखा लगे, पतझड़ लगे बहार |
सजना सजना के बिना, सखी लगे बेकार ||
इधर बरसते मेघ तो , उधर बरसते नैन |
इस जल बुझती प्यास अरु, उस जल जलता चैन |
आकुल हिय की व्याकुलता, दिखा रहे हैं नैन|
प्रियतम नहीं समीप जब, आवे
कैसे चैन||
नैनन अश्रु धार ढरै, हिय से उठती भाप|
दिन ढले ही आस ढले, रात चढ़े तन ताप||
सुन्दर !
ReplyDeleteमैं भी ब्रह्माण्ड का महत्वपूर्ण अंग हूँ l
New post भूख !
सभी दोहे बहुत सुन्दर ... विरह वेदना को बाखूबी बयान करते ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दोहे।
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