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Sunday 22 February 2015

दोहे विरह के



सावन भी सूखा लगे, पतझड़ लगे बहार |
सजना सजना के बिना, सखी लगे  बेकार ||

इधर बरसते मेघ तो , उधर बरसते  नैन |
इस जल बुझती प्यास अरु, उस जल जलता चैन |

आकुल हिय की व्याकुलता, दिखा रहे हैं नैन|
प्रियतम नहीं समीप जब, आवे कैसे चैन||

नैनन अश्रु धार ढरै, हिय से उठती भाप|
दिन ढले ही आस ढले, रात चढ़े तन ताप||


4 comments:

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