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Friday, 8 February 2013

मौसम या तुम


आज सुबह
गुनगुनी धूप की
नरम चादर लपेट
पड़ी रही न जाने कब तक
तेरी यादों की आगोश में
दिल को मिलता रहा
गुनगुना सा 
सुकून


बारिश की
पहली बूँद की
गीली सी छुअन
गालों पर
थरथरा से गए अहसास
याद आ गई तुम्हारी
वो अहसासों से भीगी
पहली छुअन


फिज़ा में उड़ते
कोहरे ने
समेट लिया मेरा वज़ूद
अपने आगोश में
साँसों से दिल तक उतर गई
कोहरे की कोरी खुशबू
पुलक उठी मैं जैसे
पाकर तेरे बदन की
महक




20 comments:

  1. ये तेरा ज़िक्र है...या इत्र है... :)
    बहुत सुंदर! वो पहला-पहला खूबसूरत एहसास....
    ~सादर!!!

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया अनिता जी!

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  2. बहुत खुबसूरत कोमल अहसास और सुंदर शब्द संयोजन, अभिव्यक्ति बधाई

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    1. हार्दिक आभार सुनील जी!

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  3. Replies
    1. धन्यवाद डॉ. मोनोका!

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  4. बहुत ही अच्छी प्रस्तुति,मौसम और प्यार की सुन्दर जुगलबंदी।

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    1. शुक्रिया राजेन्द्र जी!

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  5. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल रविवार 10-फरवरी-13 को चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है.

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    1. अरुण जी, आपकी चर्चा का हिस्सा बनना , निस्संदेह मेरे लिए प्रसन्नता व गौरव का विषय है..

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  6. धन्यवाद सतीश जी!

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  7. हलचल में शामिल करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया यशवंत जी !

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  8. deepest and inbuilt feelings

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  9. behad khoobsurat ...aapki rachna padh ke aisa laga maano ..abhi abhi ek najuk komal sa pankh hawa mei udte hue mere gaalo ko choo gaya ho ...badhai :-)

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  10. वाह, बहुत खूब

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  11. मौसम सुहाना हो जब अपनों का साथ चाहे ख्वाबों में ही सही ,बहुत कोमल अह्सासो से गुँथी शब्द माला बहुत सुंदर

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  12. हसीं ख्यालों से लबरेज़ बोलती तस्वीरों के साथ........वाह।

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  13. वाह! बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......

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  14. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति,आभार.

    प्यार के तराने जगे गीत गुनगुनाने लगे
    फिर मिलन की ऋतू आयी भागी तन्हाई

    दिल से फिर दिल का करार होने लगा
    खुद ही फिर खुद से क्यों प्यार होने लगा

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