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Sunday 28 August 2011

ये मशाल न बुझने देना 

मंजिल नहीं ये एक कदम है 
दूर लक्ष्य और जटिल डगर है
थक कर रुकना अभी नहीं संभव है
दूर गगन छूने  से पहले 
ये परवाज़ न रुकने देना

युगों तक छाये  घोर तिमिर की
लंबी काली अमावस रात्रि 
मानस को कर चुकी ग्रसित है
जो सुलगी है इस निशा नाश को
ये मशाल न बुझने देना 

आज चले  जो कदम अनगिनत 
कोटि कंठों से फूटी स्वरधारा 
हर दिल से अब  गूँज रहा है
वन्दे मातरम का ही नारा 
जन जन में अलख जगाने को
ये इन्कलाब न दबने  देना

पूर्ण परिवर्तन के वास्ते, 
जन प्रतिकार अभी चाहिए.
करने को संधान लक्ष्य का,
सतत तपस्या अभी चाहिए.
जब आग न पूरी भड़के ,
चिंगारी मद्धम न होने  देना.

ये मशाल न बुझने देना