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Thursday, 1 March 2012

ये मेरे अल्फ़ाज़

कभी- कभी ,
बहुत कुछ कहने की कोशिश में 
सब कुछ कर देते
बर्बाद 
ये मेरे अल्फ़ाज़   


जहाँ ज़रुरत भी नहीं इनकी 
जो बयाँ कर पाना
हैसियत भी नहीं इनकी  
क्यों हदें भूल अपनी 
करना चाहते 
फिर वही  बार-बार 
ये मेरे अल्फाज़ 


लफ़्ज़ों में नहीं बँधते  
जो बसे  सिर्फ तस्सव्वुर में 
हवा से भी शोख 
तितलियों से भी रंगीन 
खुशबू की तरह फिज़ा में घुलते 
जज्बातों को 
क्यों बाँध लेना चाहते 
बार-बार 
ये मेरे अल्फ़ाज़


बेअक्ल हैं ये 
नासमझ 
क्यों नहीं समझते 
अल्फाजों में बंधते ही,
जज़्बात 
बन जाते हैं 
सारे जहां की जागीर 
मल्कियत उन पे फिर खुद की 
रह पाती कहाँ 
जिसका जो दिल करे 
वही  मतलब निकालता है 
हर कोई अपने-अपने 
हिसाब से उन्हें बाँचता है 


कमान से छूटे तीर से 
फिर वापस कहाँ आ पाते 
दिल के तरकश में 
बिना करे वार 
ये मेरे अल्फाज़







37 comments:

  1. बेअक्ल हैं ये
    नासमझ
    क्यों नहीं समझते
    अल्फाजों में बंधते ही,
    जज़्बात
    बन जाते हैं
    सारे जहां की जागीर

    यह पंक्तियाँ विशेष अच्छी लगीं।

    सादर

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  2. bahut ,bahut hi pyaari rachna hai,bdhaai aap ko

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  3. यशवंत जी,
    खूबसूरत अलफ़ाज़...............

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  4. superb abhivyakti .bilkul apni si lagtihue

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  5. शालिनी जी,
    खूबसूरत अलफ़ाज़...............

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  6. पढते ही ऐसा लगा मानो मेरे ही जज़्बातों से भींगे हुए हैं ये अल्फाज़........ सचमुच बिलकुल ऐसा ही ख्याल मेरे भी मन में अक्सर आया करता है....

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  7. खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....शानदार |

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  8. अच्छे भाव है रचना के...

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  9. "बेअक्ल हैं ये
    नासमझ
    क्यों नहीं समझते
    अल्फाजों में बंधते ही,
    जज़्बात
    बन जाते हैं
    सारे जहां की जागीर"
    क्या खूब कहा है शालिनी मैम ! बेहतरीन !

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  10. आप सभी का बहुत - बहुत धन्यवाद @यशवंत जी, अवंति जी , रोली जी, नीलिमा शर्मा जी,सुषमा जी,कल्पना जी,विद्या जी एवं सुशीला जी ...... आप सभी के स्नेह के लिए हार्दिक आभार!

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  11. क्यों नहीं समझते
    अल्फाजों में बंधते ही,
    जज़्बात
    बन जाते हैं
    सारे जहां की जागीर
    लग रहा है जैसे आपने मेरे मन की बात कह दी ...या कहूं सबके मनकी बात कह दी .....सहज सुन्दर प्रस्तुति

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    1. धन्यवाद सरस जी, बस यूँ कहिये कि मन से मन को राह होती है ...... आभार!

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  12. कमान से छूटे तीर से
    फिर वापस कहाँ आ पाते
    दिल के तरकश में
    बिना करे वार
    ये मेरे अल्फाज़
    bahut badhiyaa

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    1. धन्यवाद रश्मि जी,

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  13. बेअक्ल हैं ये
    नासमझ
    क्यों नहीं समझते
    अल्फाजों में बंधते ही,
    जज़्बात
    बन जाते हैं
    सारे जहां की जागीर
    मल्कियत उन पे फिर खुद की
    रह पाती कहाँ
    जिसका जो दिल करे
    वही मतलब निकालता है
    हर कोई अपने-अपने
    हिसाब से उन्हें बाँचता है

    बेहतरीन और लाजवाब ।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया, इमरान जी ! बस यूँ ही हौंसला अफजाई करते रहिये.... आभार !

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  14. कल 03/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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    1. हलचल में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार, यशवंत जी !

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  15. 'जज्बातों को
    क्यों बाँध लेना चाहते
    बार-बार
    ये मेरे अल्फ़ाज़'
    अभिव्यक्ति और सृजन के बीज का चित्र. बहुत सुंदर लिखा है.

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद भूषण जी !

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  16. बेअक्ल हैं ये
    नासमझ
    क्यों नहीं समझते
    अल्फाजों में बंधते ही,
    जज़्बात
    बन जाते हैं
    सारे जहां की जागीर

    खूबसूरत भाव उकेरे है आपने कविता में...
    बेहतरीन..

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  17. कमान से छूटे तीर से
    फिर वापस कहाँ आ पाते
    दिल के तरकश में
    बिना करे वार
    ये मेरे अल्फाज़...........bahut sahi kaha aapne

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    1. धन्यवाद उपासना जी,

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  18. जहाँ ज़रुरत भी नहीं इनकी
    जो बयाँ कर पाना
    हैसियत भी नहीं इनकी
    क्यों हदें भूल अपनी
    करना चाहते
    फिर वही बार-बार
    ये मेरे अल्फाज़
    behtreen bahvo ke saath behtreen post

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    1. धन्यवाद अमरेंदर जी !

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  19. सुन्दर अल्फाजों के साथ सुन्दर प्रस्तुति !
    आभार !

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  20. अल्फ़ाज़ों का सार्थक विश्लेषण .... अच्छी प्रस्तुति

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  21. अलफाज के बाद की कसक ... सुंदर प्रस्तुति

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी !

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  22. खूबसूरत अलफ़ाज़.की कसक.के साथ सुन्दर प्रस्तुति !
    आभार !.............

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    1. धन्यवाद संगीता जी,

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  23. कमान से छूटे तीर से
    फिर वापस कहाँ आ पाते
    दिल के तरकश में
    बिना करे वार
    ये मेरे अल्फाज़
    rachana ka ant behad khoob soorat laga ....badhai shalini ji.

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