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Sunday, 4 March 2012

खो गई कविता

खो गई कविता 
जी हाँ , 
फिर से 
अभी कुछ देर पहले ही 
खाना बनाते हुए 
मन में बन रही थी 
एक कविता 
आटा गूंधते  हुए 
मन में गुंध रहे थे 
कुछ अनगढ़े भाव 
फिर कुछ और शब्द डाल
यत्न से कुछ और 
......और गूँधा
आटे के साथ साथ 
आकार लेने लगी
........ कविता 
धीरे-धीरे
रोटियों की सौंधी महक 
और मन में महकती कविता 
कागज़ पे उतरने को आतुर 
सोचा
 कुछ देर और 
बस थोडा काम और 
और फिर 
कुछ और थोड़ा काम 
....बस 
रात गहराती गई ....
सब के सोने के बाद 
कागज़ कलम उठा 
शुरू किया जो लिखना 
हाथ से फिसल-फिसल 
भागने लगे 
इधर- उधर सब भाव 
शब्दों को पकड़ने की कोशिश 
कभी भावों को समेटने की  
पर दोनों ही 
देते रहे धोखा  
बार- बार 
और इस बार भी 
नींद की गफलत में 
फिर से खो गई 
एक और कविता 
................. ऐसे ही
न जाने कितनी ही बार 
कभी सिरहाने के नीचे 
तो कभी काम के ढेर के पीछे 
रख के भुला दी जाती 
तो कभी 
खो जाती कविता ............ 




















24 comments:

  1. सटीक लिखा है ....ऐसे ही न जाने कितनी कवितायें खो जाती हैं .... सुंदर अभिव्यक्ति ....

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    1. धन्यवाद संगीता जी !

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  2. सटीक लिखा है ... ऐसे ही न जाने कितनी कवितायें खो जाती हैं ... अच्छी प्रस्तुति

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  3. pareshaan mat hoyein
    vichaar aate hein
    nepathy mein chale jaate hein
    khote nahee ,phir laut kar aayenge
    jab aisee hee awasthaa aayegee

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    1. धन्यवाद राजेन्द्र जी, बस यूँही, थोड़ा परेशां हो गई थी अपनी लापरवाही पे ...

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  4. हर दिन खोती है मेरी कविता इसी उहापोह में .... रखकर भूल जाती हूँ या वे खो जाते हैं .

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    1. धन्यवाद रश्मि जी, अब में आश्वस्त हूँ कि मेरे ही साथ ऐसा नहीं होता..

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  5. सच्ची कहा..............

    किचेन में एक कागज़ रखा करिये...हमारी शेल्फ के पेपर के नीचे अब भी कई अधलिखी रचनाएँ हैं
    :-)

    जाने ना दीजिए किसी ख़याल को यूँ....

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    1. धन्यवाद अनु जी, सुझाव अच्छा है !

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  6. koi baat nahi shalini ji gabraye nahi aksar aisa hota rehta hai sabhi ke sath
    .........rasoi me kaam katre aksar aisa hota h

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  7. Excellent post Shalini ji
    i am read complitly.....and after reading i agree with u

    gud wishes to u holi festival
    from Sanjay bhaskar

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  8. अक्सर ऐसी कई जीवित कवितायें भी खो जाती हैं ... रोज़मर्रा का जीवन निभाते ...
    गहरे अर्थ लिए रचना ..

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  9. बहुत खुबसूरत लगी ये पोस्ट ।
    पर पुरुष क्यों नहीं समझ पाएंगे क्योंकि उन्होंने आता नहीं गूंथा :-))

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    1. धन्यवाद इमरान जी ..... आपकी टिपण्णी पर कहना चाहूंगी( क्षमा सहित) - जाके पांव न फटी बिबाई, वो क्या जाने पीर पराई ...

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  10. sunder ....kavita kho gai .kahan khoi ,dekhiye aur praroop mein samne aa gai ..../ aksar aisa hi hota hai ......jane kitni baar .....kitni rachnayein ....yun hi ...kho jati hain .....!

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  11. हम तो खुद आपके अनुभव को कई बार जी चुके हैं शालिनी मैम!
    बहुत सुंदर अभिव्यक्‍ति !

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  12. हम तो खुद आपके अनुभव को कई बार जी चुके हैं शालिनी मैम!
    बहुत सुंदर अभिव्यक्‍ति !

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  13. Bahut SUnder Rachna..........Behtreen Bhavo ke saath behtreen prastuti

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  14. yahan to apna haal bayan ho gaya ,isliye kahte hai nari se behtar nari ko kaun samjh sakta hai ,is bishya par mere bhi bahut belan chale ,aapki rachna par mahila divas ki badhai banti hi hai ,holi parv ki badhai

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  15. जैसे हर मन की बात तह दर तह आपने सामने सजा दी ....सच में ना जाने कितनी कवितायेँ इस प्रकार गृहस्थी की भेंट चढ़ जाती हैं ....

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  16. देते रहे धोखा
    बार- बार
    और इस बार भी
    नींद की गफलत में
    फिर से खो गई
    एक और कविता
    behatareen abhivyakti pr apko hardik badhai shalini ji

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  17. अच्छी प्रस्तुति है... और हाँ ! एक रचनात्मक व्यक्ति की सोच स्त्री और पुरुष के दायरे से ऊपर होना चाहिए | पुरुषत्व तो स्त्री के भावों की समझ पर ही निर्भर है | और सम्पूर्ण वर्ग को नासमझ कहना उचित नहीं है, खासकर आप जैसे एक रचनात्मक व्यक्ति के लिए |

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  18. धन्यवाद निशांत जी ..... पुरुष मित्रों की भावनाओं को आहात करने के लिए क्षमा माँगते हुए इस टिपण्णी को हटा रही हूँ

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