Thursday, 2 February 2012

मेरी उम्मीद ...



कुछ टूटकर बिखर- सा जाता है ,
हर बार दिल के कोने में कहीं .
कुछ चटकने की -सी 
सदा आती है 
और फिर दूर तलक 
किरच- किरच हो 
कुछ टूटकर बिखर जाता है 


 कई बार सोचा कि आखिर 
क्या शै है यह 
जो रोज टूट कर भी नहीं टूटती 
हर बार फिर 
किसी और रूप में 
फिर से 
नई सी बन 
फिर जी उठती है .....
जिंदगी के सख्त  रास्तों पे 
बढ़ने को 
फिर धकेलती है आगे 
बस उसी के जीवट के सहारे 
कटता जाता है जीवन 
 छोड़  जाते हैं कितने ही अपने 
मगर 
ये है कि 
टूट कर भी नहीं छूटती 
मेरी उम्मीद .......................

14 comments:

  1. बहुत सुन्दर...
    शुभकामनाएँ...

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  2. मगर
    ये है कि
    टूट कर भी नहीं छूटती
    मेरी उम्मीद ...
    एक आस बंधाती हुई बेहतरीन रचना के लिए आभार...शालिनी जी

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  3. बहुत सुन्दर!!!

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  4. कई बार सोचा कि आखिर
    क्या शै है यह
    जो रोज टूट कर भी नहीं टूटती
    हर बार फिर
    किसी और रूप में
    फिर से
    नई सी बन
    फिर जी उठती है .....

    बहुत खूब लिखीं हैं मैम

    सादर

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  5. मेरी उम्मीद .......................

    bani bhi rahni chaahiye.....
    ye ummeed...!!

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  6. किसी और रूप में ,
    फिर से ,
    नई सी बन ,
    फिर जी उठती है ,
    टूट कर भी नहीं छूटती ,
    मेरी उम्मीद .......................
    हमेशा यही जज्बा बना रहे ,
    तो जिन्दगी की राहें आसान होती जायेगीं.... !!

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  7. यही उम्मीद हौसला बनती है और हार का एहसास भले हो,
    पर जीत मिलती है

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  8. बस उसी के जीवट के सहारे
    कटता जाता है जीवन
    छोड़ जाते हैं कितने ही अपने
    मगर
    ये है कि
    टूट कर भी नहीं छूटती
    मेरी उम्मीद .......................
    shalini ji apki yah rachana bilkul behtareen prastuti haii kahi na kahi dil ko chhoo jati hai ....bahut bahut badhai ....naye andaj me ak prabhavshali rachana...sadar abhar.sahlini ji.....han mere naye post pr amantrn sweekaren.

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  9. प्रभावपूर्ण और सार्थक,बधाई

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  10. "मगर
    ये है कि
    टूट कर भी नहीं छूटती
    मेरी उम्मीद ......................."
    बहुत बढिया शालिनी मैम !

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  11. "मगर
    ये है कि
    टूट कर भी नहीं छूटती
    मेरी उम्मीद ......................"

    बहुत बढिया !

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  12. बिलकुल सही पहचाना आपने वो उम्मीद ही है जो अक्सर उनसे ही जुडती है जिन्हें हम अपना समझते हैं और वही इसे तोड़ते भी हैं|

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  13. विद्या जी, संजय जी , नवीन जी ,विभा जी, रश्मि जी, पूनम जी, सुशीला जी एवं यशवंत जी .... आप सभी का हार्दिक आभार .

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  14. औरत खूद उतनी ही बार टूटती है
    जितनी बार ये उम्मीदें टूटती हैं ....

    दर्द को ब्यान करती नज़्म.....

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