हे प्रभु
सृजन का दो वरदान
युग युग के गहन तिमिर को तोड़
हो आलोकित मेरे प्राण
वाणी में शक्ति
अर्थ में मुक्ति
भावों में गहन सागर अपार
प्रभु , सृजन का दो वरदान
कल्पना को मेरी पंख प्रदान कर
दो अनंत विस्तृत उड़ान
शब्दों के कल्प तरु से
मैं पाऊं इच्छित वरदान
प्रभु , सृजन का दो वरदान
निश्छल भावों की मणियों से
भर दो आज ये झोली खाली
लौटे फिर वही भोला बचपन
फिर अधरों पर मृदुल मुस्कान
great thoughtss.....
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की हलचल आज (29/10/2011को) यहाँ भी है
ReplyDeleteकल्पना को मेरी पंख प्रदान कर
ReplyDeleteदो अनंत विस्तृत उड़ान
शब्दों के कल्प तरु से
मैं पाऊं इच्छित वरदान
प्रभु , सृजन का दो वरदान
बहुत सुन्दर कामना करती रचना ..
Pure thoughts... सृजन का दो वरदान
ReplyDeletewww.poeticprakash.com
सुन्दर भाव!
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