अवसाद के पल
अवसाद .... या dipression ... हर शख्स अपनी ज़िन्दगी में कभी न कभी मायूसी के कुछ लम्हात को झेलता ही है ... तब तमाम कायनात उसे फीकी सी नज़र आती है .... इस क्षण को कविता के रूप में
आखिर कब तक
जीने का अर्थ
क्या सिफ जीना
और सांस लेते जाना
उधर मांगे से पलों में
एक सांस भी अपनी न पाना
अपनी ही लाश
कंधे पर लादे
सफ़र ख़त्म होने के इंतज़ार में
बस चलते चले जाना
हमसफ़र के धोखे में
अकेले ही
सफ़र तय करते जाना
मायूसी की सियाह रात में ,
रोशनी का एक कतरा तलाशते हुए
बदहवास से जागते जाना
एक सवाल
जो हरदम मुंह बाएं खड़ा रहता है
उससे नज़रे चुरा
बच के निकल जाना
आखिर कब तक
उठाएंगी बोझ साँसें
इस उधार की गठरी का
कभी तो थकेगा ये तन
जीने का दिखावा करते करते
Very impressive indeed!
ReplyDeletebeautiful lines with deep feelings and emotions
ReplyDeleteheart touching words and expression.
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