एक सामान्य
समाज द्वारा स्वीकृत
सभ्य स्त्री बनने के लिए
अपनी समस्त विशिष्ट इच्छाएँ|
वे सभी कामनाएँ जो
समाज द्वारा स्वीकृत,
सर्वमान्य ढाँचे में फिट नहीं होतीं|
करनी पड़ती है उनमें काट-छाँट,
थोड़ी नहीं, बहुत-सी...
क़तर-ब्यौत के बाद ही वह
समा पाती है,
लोगों की आँखों-विचारों- मान्यताओं में बसे
उस नारी स्वरूप के साँचे में|
एक आम इंसान की इच्छाओं से युक्त नारी,
जब, ज़रा भी उस साँचे से बाहर
झाँकती-निकलती
दिख जाती है
बस उसी समय लग जाता है उस पर ठप्पा
सामाजिक अस्वीकृति का ....
स्वीकार नहीं करता समाज
असाधारण स्त्रियाँ ..क्योंकि .......
.... उनके पास पंख होते हैं
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