Thursday, 19 September 2024

किन भावों का वरण करूँ मैं ?

 हर पल घटते नए घटनाक्रम में,

ऊबड़-खाबड़ में, कभी समतल में,

उथल-पुथल और उहापोह में,
किन भावों का वरण करूँ मैं ?
एक भाव रहता नहीं टिककर,
कुछ नया घटित फिर हो जाता|
जब तक उसको मैं सोचने बैठूँ,
किसी और दिशा कुछ ले जाता|
क्या-कुछ-कब-कैसे-कितना के ,
चक्कर में कब तक भमण करूँ मैं?
किन भावों का वरण करूँ मैं?
विद्रूप-विकट कुछ घट जब मन में,
विद्रोह-विषाद-विरक्ति लाता |
सब तहस-नहस कर नव रचना को,
हो अधीर मन है अकुलाता|
कर चिंतन एक नई आस का,
नैराश्य-त्रास का क्षरण करूँ मैं|
किन भावों का वरण करूँ मैं?
कुछ मेरे अंतस के सपने,
सपनों में धूमिल होते अपने|
अपनों को चुनना या सपने बुनना,
किसको पाने में छूटे कितने |
हानि-लाभ क्या गणन करूँ मैं ?
किन भावों का वरण करूँ मैं?
~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी

No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...
Blogger Tips And Tricks|Latest Tips For Bloggers Free Backlinks