बातों के झरोखे
बंद नहीं होने चाहिए
रिश्तों के मकानों में .... कभी-भी |
रिश्तों के बीच,
खड़ी होती दीवारों,
बंद होते दरवाज़ों में,
बनीं रहें ये दरारें |
आते रहें झोंके,
धीमी-धीमी सदाएँ,
कुछ शिकायतों की फुसफुसाहटें,
कुछ गिला, थोड़े शिक़वे |
पहचान है यही,
कि रिश्ता अभी मरा नहीं |
कि अभी उधर है कोई,
जो नाराज़ हो भले ही ,
पर अब भी करता है फ़िक्र,
रखता है उम्मीदें अब भी |
तुम्हारी एक आवाज़ पर
दिल धड़क जाता है उसका ... अब भी |
बातों के ये वातायन ही,
करते है संचारित .....
प्राण-वायु |
जीवित रह पाते हैं जिससे,
रिश्ते !
बनी रहती हैं संभावनाएँ
पुनः जुड़ाव की
इन्हीं
बातों के झरोखों से ..
बंद नहीं होने चाहिए
रिश्तों के मकानों में .... कभी-भी |
रिश्तों के बीच,
खड़ी होती दीवारों,
बंद होते दरवाज़ों में,
बनीं रहें ये दरारें |
आते रहें झोंके,
धीमी-धीमी सदाएँ,
कुछ शिकायतों की फुसफुसाहटें,
कुछ गिला, थोड़े शिक़वे |
पहचान है यही,
कि रिश्ता अभी मरा नहीं |
कि अभी उधर है कोई,
जो नाराज़ हो भले ही ,
पर अब भी करता है फ़िक्र,
रखता है उम्मीदें अब भी |
तुम्हारी एक आवाज़ पर
दिल धड़क जाता है उसका ... अब भी |
बातों के ये वातायन ही,
करते है संचारित .....
प्राण-वायु |
जीवित रह पाते हैं जिससे,
रिश्ते !
बनी रहती हैं संभावनाएँ
पुनः जुड़ाव की
इन्हीं
बातों के झरोखों से ..
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शालिनी रस्तौगी
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