इस लोक से परे
किस लोक में
होकर व्याकुल है चला ...
यह ढूँढ़ता किसे भला ?
अज्ञात, अनाम, अदृश्य जो,
उसे खोजता है क्यों भला ?
मन यह व्याकुल मनचला,
होकर व्याकुल है चला |
रहस्यमय आवरण की परतें
प्रतिपल घनीभूत हो आएँ|
एक झलक उस पार की,
न छिप पाए ... न दिख पाए|
कौन-सी दृष्टि मिले जो
भाव दृष्टा के जगाए|
सृष्टा जो इस सृष्टि का
उसके सृजन के पास लाए |
भ्रमित पथिक -सा
चकित, थकित -सा
पाने को भटके
कोई दिशा|
होकर व्याकुल है चला
यह ढूँढ़ता किसे भला ?
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शालिनी रस्तौगी
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