Monday, 9 January 2012

चिर वियोग


जब मिलन से ज्यादा वियोग भाने  लगे
विरह का दर्द आत्मा में आनंद जगाने लगे
प्रतीक्षा के पल, संजोग के क्षणों पे भारी पड़ें 
प्रेम की कैसा अद्भुत  स्वप्निल यह संसार , प्रिय




किसे अभिलाषा, प्रिय  मिलन की
चिर वियोग मुझे प्यारा है
चिर मिलन की चिर प्रतीक्षा में
चिर अभिसार  मुझे प्यारा है

इक पल का मिलन औ
जीवन भर तड़पन,
इक पल संयोग फिर
तडपे विरहन
आंसू , आहें, तड़पन , उलझन
विरहन की तो बस ये थाती

कुछ पल संयोग को
क्यों कोश ये  खोना
एक एक आंसू पलकों में संजोना
यही चिरकोश मुझे प्यारा है .

अज्ञात मिलन की
अनंत प्रतीक्षा में
सपनों को बुन, आस पिरोना
पलक - पावड़े बिछा के पथ पे
पल पल अपलक
बाट संजोना
व्याकुलता ही बस अब गहना
धीर धरना अब किसे प्यारा  है

किसे चाहिए मिलन प्रिय
चिर वियोग ही मुझे प्यारा है ...

  

2 comments:

  1. जब मिलन से ज्यादा वियोग भाने लगे
    विरह का दर्द आत्मा में आनंद जगाने लगे
    प्रतीक्षा के पल संजोग के क्षणों पे भारी पड़ें
    प्रेम की कैसा अद्भुत स्वप्निल संसार ये प्रिये

    BAHUT YATHARTH PARAK ABHIVYAKTI .....BADHAI SHALINI JI.

    ReplyDelete
  2. वाह ... बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों का संगम है इस रचना में ।

    ReplyDelete

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