Saturday, 8 October 2011

हे करुणामय

करुणामय
करुणा कर , दो विश्वास 
अपनी करुणा के अजस्र स्रोत से 
एक बूँद प्रेम - अमय उपहार 
हाथ थाम तेरी करुणा का 
अज्ञान तिमिर कर जाऊं पार 
करुणा कर , दो यह  विश्वास 

प्रतिपल मन में  फन फैलाते 
अहंकार के विषमय व्याल 
सिर झुकते ही सिर उठाता 
ज्ञान फैला कर माया जाल 
आँख मूंदते ही खुल जाता 
मन में भ्रम का छदम् संसार 

सरल समर्पण सिखला कर तुम 
तोड़ दो ये झूठा  भ्रमजाल 
करुणा कर , दो यह  विश्वास 

6 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया।

    आपकी पोस्ट की हलचल आज (09/10/2011को) यहाँ भी है

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  2. सरल समर्पण सिखला कर तुम
    तोड़ दो ये झूठा भ्रमजाल
    करुणा कर , दो यह विश्वास

    सुन्दर भावपूर्ण प्रार्थना.
    मन को पवित्रता का अहसास कराती हुई.

    अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार,शालिनी जी.

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  3. रतिपल मन में फन फैलाते
    अहंकार के विषमय व्याल...

    वाह वाह! कितने सुन्दर भाव भरे हैं आपने गीत में....
    वाह! सादर बधाई...

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  4. बहुत सुंदर पावन स्तुति लिए भाव .....

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  5. सुंदर भाव, सुंदर प्रस्तुति !

    आपको करुणामय का विश्वास और आशीष सदा ही मिलेगा ! आपके निर्मल स्वभाव-सी निर्मल रचना ! बधाई !

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  6. दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
    कल 24/10/2011 को आपकी कोई पोस्ट!
    नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद

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