एक मित्र ने हिंदी बोलते समय कुछ अंग्रेजी शब्दो के प्रयोग पर कड़ी आपत्ति की, मन को यह बात बहुत चुभी, हिंदी कोई मृत भाषा नहीं .....यह तो अत्यंत जीवंत भाषा है जिसमें अनेक भाषाओँ के शब्दों को स्वयं में समाहित करने की क्षमता है ....अन्य भाषाओँ के शब्दों को हटा दिया जाए हो हिंदी ही न बचे .......किसी भाषा से उसकी व्यावहारिकता का गुण छीनना एक अपराध है ...........
संस्कृत की गंगोत्री से निकली
हिंदी गंगा की धारा
अमय रस से अपने
जन- मन सिंचित कर डाला
सब को समाहित कर स्वयम् में
हुई विस्तृत इसकी धारा
किसी भाषा ने इसके
प्रवाह में अवरोध न डाला,
फिर क्यों कुछ रूदियों में बांध कर
इसकी गति में रोध हम डाले
भाषा से सहजता का गुण छीन
क्यों किलिष्ट उसे कर डाले
कितनी ही जलधाराओं को
खुद में समेट
गंगा गंगा ही रहती है
वैसे ही कुछ शब्दों के प्रभाव से
हिंदी क्या हिंदी न रहती
तो
संकुचित मानसिकता को त्यज
भाषा को दें व्यावहारिक रूप
सुन्दर है यह भाषा इतनी
ना बनाएँ इसको दुरूह
कल 05/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
संकुचित मानसिकता को त्यज
ReplyDeleteभाषा को दें व्यावहारिक रूप
सुन्दर है यह भाषा इतनी
ना बनाएँ इसको दुरूह
हिंदी भाषियों के लिए प्रभावी सन्देश,
सुन्दर अभिव्यक्ति!
सादर