लगाव तुमसे
अलग- सा ही है कुछ
अदृश्य, अपरिभाषित, अपरिमित
अकल्पित हैं सीमायें इसकी
है कौन -सा आकर्षण जो
विकर्षण की हर सीमा तक जाकर भी
फिर - फिर तोड़
समीपता की हर एक सीमा
समाहित कर देता है मुझे तुममें
सोचती ... कुछ तो कहा होगा किसी ने
कुछ नाम तो दिया होगा
इस आकर्षण को
कुछ शब्द परिभाषित इसे
करते तो होंगे
ऐसे ही अनुभव
और भी रखते तो होंगे
पर हर बार .... कोई उत्तर नहीं मिल पता
परिभाषित कैसे करूँ इसे
रूप नया धर
हर बार सामने आता
अब छोड़ दिया इसे कुछ नाम देना
क्योंकि बहुत अलग है
मेरा
तुमसे लगाव।
Shalini rastogi

बहुत कठिन होता है कोई नाम देना इस अहसास को...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
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