अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
मन से लोभी सभी है,कभी न करियो प्रीत देखत फूल गुलाब का,सूंघन की है रीत सूंघन की है रीत,भौंरें काटते चक्कर करते है रसपान,भाग जाते है चखकर रखो हमेशा दूर,बचाओ इनको तन से कभी न करियो प्रीत,सभी है लोभी मन से,,,,
तुम आते मेरे प्राण विकल हो जाते, तुम जाते मेरे गान सजल हो जाते | तुम आते जाते घर सूना का सूना, तुम रहते फिर भी दुःख दूना का दूना, है जिसका पता न कब गरजे कब बरसे, तुम वही मेघ सावन के सजल घने हो, तुम खुले नयन के सपने हो |
तुम आते मेरे प्राण विकल हो जाते, तुम जाते मेरे गान सजल हो जाते, तुम आते जाते घर सूना का सूना, तुम रहते फिर भी दुःख दूना का दूना | है जिसका पता न कब गरजे कब बरसे, तुम वही मेघ सावन के सजल घने हो, तुम खुले नयन के सपने हो |
आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.
वाह क्या बात है शालिनी वर्तमान प्रेम को बहुत ही सुन्दरता से परिभाषित किया है आपने सुन्दर कुण्डलिया आदरेया हार्दिक बधाई
ReplyDeleteअरुण जी ...आपका ह्रदय से आभार व्यक्त करती हूँ ...
Deleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति शालिनी जी,आभार.
ReplyDeletedhanyvaad rajendr ji !
Deleteमनमीत से प्रीत अपने आप ही लग जाती है ...चाहे जितने जातां करो ...
ReplyDeletemai bhi aapki baat se poorntaya sehmat hu :-)
Deleteसहमत हूँ आपसे दिगंबर जी ...
Deleteबहुत सुंदर कुण्डली...बधाई शालनी जी,
ReplyDeleteमन से लोभी सभी है,कभी न करियो प्रीत
देखत फूल गुलाब का,सूंघन की है रीत
सूंघन की है रीत,भौंरें काटते चक्कर
करते है रसपान,भाग जाते है चखकर
रखो हमेशा दूर,बचाओ इनको तन से
कभी न करियो प्रीत,सभी है लोभी मन से,,,,
Recent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,
धन्यवाद सर ...आपका मार्गदर्शन मिलते रहना चाहिए बस...
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteबधाई
धन्यवाद ज्योति खरे जी
Deleteबहुत सुद्नर आभार अपने अपने अंतर मन भाव को शब्दों में ढाल दिया
ReplyDeleteआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
एक शाम तो उधार दो
आप भी मेरे ब्लाग का अनुसरण करे
आभार दिनेश जी!
Deleteप्रीत की रीत ही कुछ ऐसी है... मन रीता सा हो जाता है......
ReplyDelete~सादर!!!
सही कहा अनीता जी!
Deleteसुंदर भावनायें .बेह्तरीन अभिव्यक्ति.शुभकामनायें.
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया मदन जी!
Deleteवाह......कुछ अलग सा इस बार ।
ReplyDeleteबस प्रयास है इमरान जी!
Deleteतुम आते मेरे प्राण विकल हो जाते,
ReplyDeleteतुम जाते मेरे गान सजल हो जाते |
तुम आते जाते घर सूना का सूना,
तुम रहते फिर भी दुःख दूना का दूना,
है जिसका पता न कब गरजे कब बरसे,
तुम वही मेघ सावन के सजल घने हो,
तुम खुले नयन के सपने हो |
धन्यवाद शेखर मिश्र जी!
Deleteतुम आते मेरे प्राण विकल हो जाते,
ReplyDeleteतुम जाते मेरे गान सजल हो जाते,
तुम आते जाते घर सूना का सूना,
तुम रहते फिर भी दुःख दूना का दूना |
है जिसका पता न कब गरजे कब बरसे,
तुम वही मेघ सावन के सजल घने हो,
तुम खुले नयन के सपने हो |
वाह बहुत सुन्दर,
ReplyDeleteKAVYA SUDHA (काव्य सुधा):
bahut hi khoobsurat rachna lagi mujhe man ke taar ched dene wali holi ke mauke par ekdum upyukt badhai aisi sundar rachna ke liye :-)
ReplyDeleteकविता दिवस पर विशेष Os ki boond: कविता की खोज में ......
सुन्दर शब्द रचना..।
ReplyDeletedhanyvaad asha ji!
Deleteबहुत सराहनीय प्रस्तुति.बहुत सुंदर . आभार !
ReplyDeleteले के हाथ हाथों में, दिल से दिल मिला लो आज
यारों कब मिले मौका अब छोड़ों ना कि होली है.
मौसम आज रंगों का , छायी अब खुमारी है
चलों सब एक रंग में हो कि आयी आज होली है