आवारा भाव
इधर-उधर, बेतहाशा
दौड़ते से भाव....
न सीमा मानते, न बंधन
हर दहलीज को उलांघते हैं भाव|
कभी झिरियों
कभी सुराखों से
कभी दीवार में पड़ी दरारों से,
हर दरवाज़े को तोड़,
हर कड़ी को खोल,
सेंध लगा कर
अनायास अनधिकृत ही
निषिद्ध क्षेत्रों में कर प्रवेश
मचाते उत्पात,
यूँही कभी उपद्रवी बन जाते हैं भाव....
कभी मर्यादाओं से टकरा
कभी रूढ़ियों की चट्टानों पर सिर पटक
ज़ख़्मी हो
तानों और उलाहनों की
कंटीली डगर पर घिसटते
छिला जिस्म ले
कहराते, पर रुक न पाते भाव....
जाने किस आवारगी की
लत लगा कर
फिरते हैं इधर-उधर
आवारा भाव
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shalini rastogi
(चित्र गूगल से साभार)
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