खुद ब खुद
होने लगती हैं अचानक
कई क्रियाएँ।
पता नहीं क्यों
पर खुद ही बाँध लिए जाते हैं
बंधन पाँव में।
चलते हुए पाँव
अचानक
समेट लेते हैं
अपनी रफ़्तार
बदल लेते हैं दिशा।
जाने कैसे
खुद ही संचालित होने लगती हैं
अनचाही गतिविधियां
कभी माथे की शिकन से,
कभी किसी नाराजगी के डर से।
और मन बड़े ही बेमन से
खुद को ही मार कर
फिर करने लग जाता है वो सब
जो हम नहीं ...... दूसरे चाहते हैं।
औरतों के दिमाग में
सदियों से फीड कर दी गई
ये स्वचालित क्रियाएँ
मौका मिलते ही
अपनी चाहतों और इच्छाओं को
एक भारी शिला के नीचे दबा
होने लग जाती हैं
खुद ब खुद
~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी
होने लगती हैं अचानक
कई क्रियाएँ।
पता नहीं क्यों
पर खुद ही बाँध लिए जाते हैं
बंधन पाँव में।
चलते हुए पाँव
अचानक
समेट लेते हैं
अपनी रफ़्तार
बदल लेते हैं दिशा।
जाने कैसे
खुद ही संचालित होने लगती हैं
अनचाही गतिविधियां
कभी माथे की शिकन से,
कभी किसी नाराजगी के डर से।
और मन बड़े ही बेमन से
खुद को ही मार कर
फिर करने लग जाता है वो सब
जो हम नहीं ...... दूसरे चाहते हैं।
औरतों के दिमाग में
सदियों से फीड कर दी गई
ये स्वचालित क्रियाएँ
मौका मिलते ही
अपनी चाहतों और इच्छाओं को
एक भारी शिला के नीचे दबा
होने लग जाती हैं
खुद ब खुद
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शालिनी रस्तौगी
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 14 मई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार यशोदा जी
Deleteबहुत खूब!सुंदर रचना आपका आभार
ReplyDeleteधन्यवाद ध्रुव सिंह जी
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