Showing posts with label दोहे. Show all posts
Showing posts with label दोहे. Show all posts

Thursday, 2 January 2020

श्री कृष्ण गोबिंद हरे मुरारे


हरे कृष्णा

सज्जित सोलह कला शशि, खिला पक्ष था  कृष्ण |
किया उजाला जगत को, दुनिया कहती कृष्ण ||

मुरलीवाला


Friday, 12 May 2017

कुछ दोहे त्योहारों के

वसंत पंचमी
श्वेत कमल विराज रही, वाहन हंसा श्वेत।
शुभ्र वस्त्र में शोभती, वीणा स्वर समवेत।।
कुमति हरो माँ शारदे, दो प्रज्ञा वरदान।
वाक् अर्थ में प्रवीण हों, मिट जाय तम अज्ञान ।।
गणतंत्र दिवस 
आँख में स्वाभिमान का, हृदय गर्व का मन्त्र।
अक्षुण्ण कीर्ति से सदा, जगमग हो गणतंत्र ।।

रक्षा बंधन

राखी बंधन प्यार का, सुन्दर इक उपहार।
कच्चे धागों में बंधा, छोटा - सा संसार ।।
लगा के माथे पर तिलक, बाँध कलाई प्यार।
रक्षा के विश्वास के, बहना जोड़े तार।।
शरद पूर्णिमा 
शरत ऋतु की पूनम में , चाँद खिला आकाश।
दिखलाए सोलह कला, लगे खीर का प्राश।।
Shalini rastogi 

पलाश


फूले वृक्ष पलाश ज्यों, अगनी के हों फूल।

दहका-दहका वन लगे, विरह चुभे ज्यों शूल।।

महुआ और पलाश से, देख सज गया फाग।
राग-रंग बिखरा गली, विरहन हृदय विराग।।




Wednesday, 2 December 2015

प्रेम पगे दोहे


बैरी बन बैठा हिया, जाय बसा पिय ठौर ।
गात नहीं बस में रहा, कहूँ करे कुछ और ।।

विद्रोही नैन हुए, सुनें नहीं इक बात ।
बिन पूछे पिय से लड़े, मिली जिया को मात ।।

बन कस्तूरी तन बसा , छूटे गात सुगंध ।
लाख छिपाया ना छिपा, प्रेम बना मकरंद ।।

नैनों से छलकी कभी, फूटी कभी बन बैन ।
प्रीत बनी पीड़ा कभी, कभी बन गई चैन ।।

Monday, 7 September 2015

दो दोहे

 शातिर दो नैना बड़े, लड़ें मिलें दिन रैन|
नैनन के इस मेल में, जियरा खोवे चैन||





पाती अँसुवन से लिखी, बदरा पर दिन-रात|
पवन पीया तक ले गई, बरस सुनाई बात ||

Wednesday, 15 April 2015

बेमौसम बरसात (दोहे)



धरती माँ की कोख में, पनप रही थी आस |

अग्नि बन नभ से बरसा, इंद्रदेव का त्रास ||



व्याकुल हो इक बूँद को, ताके कभी आकास|

कभी बरसते मेह से, टूटे सारी आस ||

Sunday, 22 February 2015

दोहे विरह के



सावन भी सूखा लगे, पतझड़ लगे बहार |
सजना सजना के बिना, सखी लगे  बेकार ||

इधर बरसते मेघ तो , उधर बरसते  नैन |
इस जल बुझती प्यास अरु, उस जल जलता चैन |

आकुल हिय की व्याकुलता, दिखा रहे हैं नैन|
प्रियतम नहीं समीप जब, आवे कैसे चैन||

नैनन अश्रु धार ढरै, हिय से उठती भाप|
दिन ढले ही आस ढले, रात चढ़े तन ताप||


Saturday, 24 January 2015

माँ सरस्वती (दोहे)



वसंत पंचमी पर माँ सरस्वती के चरणों में दो दोहे
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
वर दो माता शारदे, विद्या का दो दान |
ज्ञान बुद्धि से युक्त हों, मिटे समूल अज्ञान ||

श्वेत कमल आसन तेरा, धारे वीणा हाथ|
धवल वस्त्र धारण करे, ब्रह्मा जी का साथ ||

Sunday, 20 July 2014

दोहे

1.
जोड़ी जुगल निहार मन, प्रेम रस सराबोर|
राधा सुन्दर मानिनी, कान्हा नवल किशोर||
२.
हरे बाँस की बांसुरी, नव नीलोत्पल गात|
रक्त कली से अधर द्वय,दरसत मन न अघात ||
3
आकुल हिय की व्याकुलता, दिखा रहे हैं नैन|
प्रियतम नहीं समीप जब, आवे कैसे चैन||

4.
मानव प्रभु से पाय के, मनुज देह अनमोल |
सजा सुकर्मों से इसे, सोने से मत तोल ||

5. 
ह्रदय अश्व की है अजब , तिर्यक सी ये चाल 
विचार वल्गा थाम के, साधो जी हर हाल ||

6.
मात पिता दोनों चले , सुबह छोड़ घर द्वार |
बालक नौकर के निकट, सीखे क्या संस्कार ||

7.
चिंतन मथनी से करें , मन का मंथन नित्य |
पावन  बनें विचार तब , निर्मल होवें कृत्य ||

8.
इज्ज़त पर हमला कहीं, कहीं कोख में वार |
मत आना तू लाडली, लोग यहाँ खूंखार ||

9.
बन कर शिक्षा रह गई, आज एक व्यापार |
ग्राहक बच्चे हैं बने, विद्यालय बाज़ार  || 

10.
इधर बरसते मेघ तो , उधर बरसते  नैन |
इस जल बुझती प्यास औ, उस जल जलता चैन || 

11.
सावन आते सज गई , झूलों से हर डाल|
पिया गए परदेस हैं, गोरी हाल बेहाल ||

12
कोयल कूके  बाग़ में, हिय में उठती हूक |
सुन संदेसा नैन का, बैन रहेंगे मूक ||

13. 
संस्कृति जड़ इंसान की, रखें इसे सर-माथ |
पौधा तब तक है बढ़े, जब तक जड़ दे साथ ||

14.
नाजुक-सी  है चीज़ ये , ग़र आ जाए  खोट |
जीभ तेज़ तलवार सी, करे मर्म पर चोट ||

15.
रखा गर्भ में माह नौ , दिए देह औ प्रान |
वो माँ घर में अब पड़ी, ज्यों टूटा सामान ||

16
संग निभाने हैं हमें , कर्त्तव्य व अधिकार |
हो स्वतंत्रता का तभी, स्वप्न  पूर्ण साकार ||

17
नारी धुरी समाज की, जीवन का आधार |

डूब जायगी सभ्यता, बिन नारी मझधार ||

18 
ऊपर बातें त्याग की, मन में इनके  खोट |
दुनिया को उपदेश दें , आप कमाएँ नोट ||

19.
नैनन अश्रु धार ढरै, हिय से उठती भाप|
दिन के ढलते आस ढले, रात चढ़े तन ताप||

20.
कर्म देख इंसान के , सोच रहा हैवान|
काहे को इंसानियत, खुद पे करे गुमान ||

21. 
कोसे अपनी कोख को , माता करे विलाप |
ऐसा जना कपूत क्यों, घोर किया है पाप ||

22.
अपनी संस्कृति सभ्यता, लोग रहे हैं छोड़ |
हर कोई है कर रहा , पश्चिम की ही होड़  ||
23
धरती माँ की कोख में, पनप रही थी आस |
अग्नि बन नभ से बरसा, इंद्रदेव का त्रास ||
24

व्याकुल हो इक बूँद को, ताके कभी आकास|
कभी बरसते मेह से, टूटे सारी आस ||

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...
Blogger Tips And Tricks|Latest Tips For Bloggers Free Backlinks