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Sunday, 12 April 2020
शिव-शक्ति
न स्वामिनी, न दासी शिव की, तुम संगी शिव की शक्ति।
तुम शिव में लय, शिव तुम में लीन, शिव-प्रीत रंगी शक्ति।
अर्धांग नहीं पूरक शिव की, तुम तप तुम लीला शिव की,
शिव-अनुरागी, शिव की सहगामी तुम शिव अनुषंगी शक्ति।
Friday, 8 June 2018
आवाजें
आवाजें
मन में उठती
आवाजें
कानों में फुसफुसाती
गुनगुनातीं,
चीखतीं चिल्लातीं,
मेरे होंठों पे
मौन बनके
ठहर जाती हैं
मन में उठती
आवाजें
कानों में फुसफुसाती
गुनगुनातीं,
चीखतीं चिल्लातीं,
मेरे होंठों पे
मौन बनके
ठहर जाती हैं
Friday, 11 May 2018
अपूर्णता में सम्पूर्णता
अपूर्णता ही सत्य
अपूर्णता ही शाश्वत ।
मिथ्या है ...
सम्पूर्णता का अभिमान
सम्पूर्णता की चाह
मृग मरीचिका ।
अपूर्णता जगाती
जिजीविषा ।
अपूर्णता की स्वीकारोक्ति ही
सबसे बड़ी
सम्पूर्णता ...
~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी
अपूर्णता ही शाश्वत ।
मिथ्या है ...
सम्पूर्णता का अभिमान
सम्पूर्णता की चाह
मृग मरीचिका ।
अपूर्णता जगाती
जिजीविषा ।
अपूर्णता की स्वीकारोक्ति ही
सबसे बड़ी
सम्पूर्णता ...
~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी
प्राथमिकता
पुरुष ने नारी से कहा
सुनो,तुम मेरी प्राथमिकता हो...
नारी ने भी बड़े यत्न से
प्राथमिकता की इस प्रवंचना सहेज लिया
और अपनी सभी प्राथमिकताओं को
निचला दर्ज़ा देकर
पुरुष को अपनी प्राथमिकता बना लिया।
फिर पुरुष की प्राथमिकताएं बदलने लगीं
और स्त्री ....
दूसरे से तीसरे, तीसरे से चौथे
पायदानों से होती हुई
अंतिम पायदान पर खड़ी
बस देखती रही
अपनी प्राथमिकताओं में
सबसे ऊपर विराजमान
उस पुरुष को ....
~~~~~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी
सुनो,तुम मेरी प्राथमिकता हो...
नारी ने भी बड़े यत्न से
प्राथमिकता की इस प्रवंचना सहेज लिया
और अपनी सभी प्राथमिकताओं को
निचला दर्ज़ा देकर
पुरुष को अपनी प्राथमिकता बना लिया।
फिर पुरुष की प्राथमिकताएं बदलने लगीं
और स्त्री ....
दूसरे से तीसरे, तीसरे से चौथे
पायदानों से होती हुई
अंतिम पायदान पर खड़ी
बस देखती रही
अपनी प्राथमिकताओं में
सबसे ऊपर विराजमान
उस पुरुष को ....
~~~~~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी
Sunday, 18 March 2018
अहं
अहं
बहुत सख़्त होते हैं ये अहं
जब भी आपस में टकराते हैं
लोग भले ही टूट जाएँ
पर अहं क़ायम रह जाते हैं।
ज़िद से पलते
पोषण पाते
बहुत बड़े होते जाते हैं ये अहं
हर संबंध , हर नाते रिश्ते से
ऊपर निकल जाते हैं अहं
बहुत सख़्त होते हैं ये अहं
जब भी आपस में टकराते हैं
लोग भले ही टूट जाएँ
पर अहं क़ायम रह जाते हैं।
ज़िद से पलते
पोषण पाते
बहुत बड़े होते जाते हैं ये अहं
हर संबंध , हर नाते रिश्ते से
ऊपर निकल जाते हैं अहं
Saturday, 17 March 2018
रीती गागर
बूँद -बूँद रिसते,
जब रीत जाता है मन।
मन की खाली गागर लिए,
निकल पड़ती हूँ फिर,
भरने को उसमें
अनचीन्हे दर्द
~~~~~~~~~~
आँसुओं से सीले थे ख्वाब, सुलगते रहे न जल पाए।
बेड़ियाँ पाँव मेरे, तेरे पाँवों पंख, चाह के भी संग न चल पाए।
~~~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी
जब रीत जाता है मन।
मन की खाली गागर लिए,
निकल पड़ती हूँ फिर,
भरने को उसमें
अनचीन्हे दर्द
~~~~~~~~~~
आँसुओं से सीले थे ख्वाब, सुलगते रहे न जल पाए।
बेड़ियाँ पाँव मेरे, तेरे पाँवों पंख, चाह के भी संग न चल पाए।
~~~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी
Monday, 25 September 2017
Wednesday, 2 September 2015
रीतापन (क्षणिकाएँ)
1.
कभी छोड़ देना ज़रा
अपनी तन्हाइयों को
मेरी खामोशियों के साथ
फिर देखना दोनों
कितनी बातें करते हैं
2.
अखर जाता है अक्सर
भावों का न होना
दुःख, पीड़ा, कसक, बेचैनी
हाँ, करती तो है
व्याकुल
पर कुछ तो होता है
मन के भीतर
पर रीतापन अंतस का अक्सर
जाता है क्यों
अखर ...
Monday, 2 June 2014
क्षणिकाएं ....
शून्य (क्षणिका)
~~~~
प्रतीक्षविहीन पल
न मन में आस, न विश्वास.
न अब कोई आहट
न मन के द्वार खटखटाहट
हर तरफ बस एक शून्य
निशब्द सी कुछ घड़ियाँ
बस चलते चले जा रहे हैं
सदियों से लम्बे
ये प्रतीक्षविहीन पल
~~~~~~~~~~~
अदृश्य दीवारें
~~~~~~~
अदृश्य दीवारें
कुछ अदृश्य बाँध
रोकते हैं मार्ग
विचारों के प्रवाह का
मन के उत्साह का
खुशियों की गति को
करके अवरुद्ध
मार्ग में आ अड़ती हैं
कुछ अदृश्य दीवारें .....
~~~~
प्रतीक्षविहीन पल
न मन में आस, न विश्वास.
न अब कोई आहट
न मन के द्वार खटखटाहट
हर तरफ बस एक शून्य
निशब्द सी कुछ घड़ियाँ
बस चलते चले जा रहे हैं
सदियों से लम्बे
ये प्रतीक्षविहीन पल
~~~~~~~~~~~
अदृश्य दीवारें
~~~~~~~
अदृश्य दीवारें
कुछ अदृश्य बाँध
रोकते हैं मार्ग
विचारों के प्रवाह का
मन के उत्साह का
खुशियों की गति को
करके अवरुद्ध
मार्ग में आ अड़ती हैं
कुछ अदृश्य दीवारें .....
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