Sunday 31 March 2013

लम्हा लम्हा



लम्हा लम्हा


रात रिसती रही 




आँखों की कोर से 




न नींद ही आई



न ख्वाब कोई 




एक-एक सितारा 




टूट कर गिरता रहा 




ज़मीन पे 




भोर होते न होते 




न तारे बचे आसमां के पास 




न नमी 




आँखों में 




रह गए तो बस 




सूख कर चटके हुए



कुछ ख्वाव 




समेटते रहे टुकड़े जिनके 




तमाम दिन 




लम्हा लम्हा

Monday 25 March 2013

रातरानी से झरें हम.



जुस्तज़ू में जीने की अब, क्यों हर घड़ी मरें हम
 दरकिनारे डर को करके, फैसला कोई करें हम.

या खुदा तेरा जहाँ ये, क्या अजब है क्या गज़ब है.
हर कदम पे देख धोखे, आह सदमें से भरें  हम.

रास आया ना जहाँ ये, है रिवायत क्या यहाँ की,
बंदिशों में कैद इनकी, फैसले क्योंकर करें हम.

इश्क ने तेरे बनाया, न थे काफ़िर कभी भी,
उस खुदा को छोड़ तेरी, यूँ इबादत अब करें हम.

रंग औ बू से दुनिया महरूम हो तेरी कभी ना.
राह महकाएँ तेरी हम, रातरानी से झरें हम.


Sunday 17 March 2013

मनमीत (कुण्डलिया)



मनमीत से मत करियो, सखी कभी भी प्रीत|

रीता मन हो जाएगा, ऐसी है  ये  रीत  ||

ऐसी है ये रीत , हिया हर पल तडपाए |

लाख जतन करै पर , मन कहीं चैना  न पाए||

रस के हैं लोभी , उड़ जाएँ  रस के रीत|

सुन सखी भ्रमर से , होते सारे मनमीत || .

Monday 11 March 2013

चितवन



चितवन से हर ले जिया, चितवत करै शिकार |
गोरी तेरे दो नैन,   ब्याध  बड़े  हुशियार ||
ब्याध बड़े हुशियार, जाल ये अपने कसते |
मृगनयनी को देख  , आखेट व्याघ्र का करते   ||
काम कमान सो वक्र ,  रूप-माया का उपवन |
साजन हिया  डोलत, देख   तेरी ये चितवन ||

( अब भी मात्राओं की गड़बड़ है ...)

गुमशुदा


गुमशुदा से हो गए वो, शहर छोड़े बैठे हैं 
हम तो उनकी चौखट से, आस जोड़े बैठे हैं.

है गुरूर या गैरत , गैरियत है या गफलत,
अपनी है गरज फिर भी,मुँह को मोड़े बैठे हैं 

अर्ज़ पर, गुज़ारिश पर भी ,खफ़ा से रहते हैं, 
क्या गुमान है इतना, दिल जो तोड़े बैठे हैं .

काश अब निकल जाए, सब गुबार ये दिल का,
कितने तूफान आँखों में, दिल निचोड़े बैठे है 

अब उन्हें बुलाने को कोई गुमाश्ता भेजें,
कासिदों की तो हिम्मत वो, कबकी तोड़े बैठे हैं,



Saturday 9 March 2013

कुंडलिया



हिय को हारे से भला, जीवन जइयो हार |

हिय के हारे न चले, जीवन का व्यापार||

जीवन का व्यापार, रात-दिन घाटा - घाटा|

जगत-सोवत तडपे, वैद्य भी जान न पाता||

हिया  दिए न चैना, फिरोगे मारे-मारे|

निर्मोही को कदर नहीं, हम क्यों हिय को हारें || 

(छंद ज्ञान रखने वाले मित्रों से क्षमा चाहूंगी यदि कोई गलती रह गई हो तो कृपया माफ करें) 

Thursday 7 March 2013

फिर एक बार



बस एक बार 

रिस जाने दो 


दिल में भरा समुन्दर 


न रहे बाकी कुछ 


पता नहीं कैसे


ज़हर कि कुछ बूंदे


छलक गयी हैं इसमें 


विषाक्त हो उठा है ये 


आज रिक्त हो जाने दो इसे 


सारा का सारा 


न रहे बाकी कुछ भी 


न नफ़रत, न प्यार 


जब सूखने लगेंगी दीवारें इसकी


चटकने लगेगा प्यास से कंठ


फिर मांगेगा यह 


भावों का समुन्दर 


तब उडेलना बूंद-बूंद तुम 


पर पूरा न भरना 


रहने देना कुछ खालीपन 

कुछ अतृप्ति 


और बनी रहूँ सदा आकांक्षी 


फिर थोड़ा-थोड़ा प्रेम उड़ेल


कुछ भरना 


भावों से, अहसासों से 


फिर एक बार

Monday 4 March 2013

दुनिया की नुमाइश ....


नुमाइश है ये दुनिया, क्या यहाँ नुमाया नहीं होता .

इंसानों की बस्ती में इंसानियत का नज़ारा नहीं होता 



खूबसूरती का नकाब पहने घूमे है यहाँ  वहशत, 

सूरत से किसी की सीरत का अंदाज़ा नहीं होता .


न जाने कितने स्वांग रचाए फिरते हैं शराफत का 


तस्बीह फेरने वाला हर, पीर औ इमाम नहीं होता .


ईमान औ इल्म की यहाँ सभी दुकान सजाये बैठे हैं,


कौन समझाए कि बाजार में हर शख्स खरीदार नहीं होता.


सफ़ेद लिबासों में स्याह दिल औ ईमान छिपा रखा है

सफेदी पे स्याह दाग कभी पोशीदा नहीं होता .

Sunday 3 March 2013

तुम्हारे शब्द



तुम्हारे शब्द 

पानी की लहरों पर 

बहते हुए

कहीं दूर चले जा रहे थे 

गूंज रही थी कानों में 

धीरे-धीरे

दूर होती जा रही थीं 

उनकी आवाजें

पर आगे तो 

भंवर है एक बहुत बड़ा 

अनंत, अंधकारमय 

सुना है कि वहाँ से 

शब्द कभी 

वापस नहीं आते 

उस भंवर तक पहुंच पाएँ

उससे पहले

छान निकालूँ इन्हें 

दिल की छलनी में

और धुप में सुखा 

सहेजूँ इन्हें 

यादों की किताब में 

गुलाब की तरह 

ताकि जब भी पन्ने पलटें 

महक उठे तन-मन 

और एक बार फिर से जी लूँ मैं 

तुम्हारे शब्द

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