रिस जाने दो
दिल में भरा समुन्दर
न रहे बाकी कुछ
पता नहीं कैसे
ज़हर कि कुछ बूंदे
छलक गयी हैं इसमें
विषाक्त हो उठा है ये
आज रिक्त हो जाने दो इसे
सारा का सारा
न रहे बाकी कुछ भी
न नफ़रत, न प्यार
जब सूखने लगेंगी दीवारें इसकी
चटकने लगेगा प्यास से कंठ
फिर मांगेगा यह
भावों का समुन्दर
तब उडेलना बूंद-बूंद तुम
पर पूरा न भरना
रहने देना कुछ खालीपन
कुछ अतृप्ति
और बनी रहूँ सदा आकांक्षी
फिर थोड़ा-थोड़ा प्रेम उड़ेल
कुछ भरना
भावों से, अहसासों से
फिर एक बार
सुन्दर कविता और भाव.
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteगुज़ारिश : ''महिला दिवस पर एक गुज़ारिश ''
अह्साओं की लाजबाब अभिव्यक्ति,,,,बधाई शालिनी जी,,,
ReplyDeleteRecent post: रंग गुलाल है यारो,
कुछ खाली रहे...तो भरने की आस में ही जीता रहता है ये मन......
ReplyDeleteअच्छी रचना!
~सादर!!!
बहुत ही सुन्दर एवं भावपूर्ण कविता,धन्यबाद.
ReplyDeleteआप कल्पनाशील हैं .गूढ़ ज्ञान और रहस्यमयी प्र्स्तुति. हिंदी साहित्य का फिर से पुनर जन्म हो गया लगता है. बधाई .विवेक ,तर्क और दर्शन का दुर्लभ संगम .
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