Thursday, 7 March 2013

फिर एक बार



बस एक बार 

रिस जाने दो 


दिल में भरा समुन्दर 


न रहे बाकी कुछ 


पता नहीं कैसे


ज़हर कि कुछ बूंदे


छलक गयी हैं इसमें 


विषाक्त हो उठा है ये 


आज रिक्त हो जाने दो इसे 


सारा का सारा 


न रहे बाकी कुछ भी 


न नफ़रत, न प्यार 


जब सूखने लगेंगी दीवारें इसकी


चटकने लगेगा प्यास से कंठ


फिर मांगेगा यह 


भावों का समुन्दर 


तब उडेलना बूंद-बूंद तुम 


पर पूरा न भरना 


रहने देना कुछ खालीपन 

कुछ अतृप्ति 


और बनी रहूँ सदा आकांक्षी 


फिर थोड़ा-थोड़ा प्रेम उड़ेल


कुछ भरना 


भावों से, अहसासों से 


फिर एक बार

6 comments:

  1. सुन्दर कविता और भाव.

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  2. अह्साओं की लाजबाब अभिव्यक्ति,,,,बधाई शालिनी जी,,,

    Recent post: रंग गुलाल है यारो,

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  3. कुछ खाली रहे...तो भरने की आस में ही जीता रहता है ये मन......
    अच्छी रचना!
    ~सादर!!!

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  4. बहुत ही सुन्दर एवं भावपूर्ण कविता,धन्यबाद.

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  5. आप कल्पनाशील हैं .गूढ़ ज्ञान और रहस्यमयी प्र्स्तुति. हिंदी साहित्य का फिर से पुनर जन्म हो गया लगता है. बधाई .विवेक ,तर्क और दर्शन का दुर्लभ संगम .

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