Sunday 17 July 2016

हास करे, परिहास करे

सवैया 


हास करे, परिहास करे मन की गति वो समझे नहिं मेरी।

आय, सताय,रुलाय,मनाय,करे मन की सुनता नहिं बैरी।

लाज भरी इनकार करूँ झट बात बना करके मति फेरी।

लेकर सौं इक बात कहूँ अब बात न मानु कभी पिय तेरी।।
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