Saturday 11 June 2011

अवसाद के पल
 अवसाद .... या dipression ... हर शख्स अपनी ज़िन्दगी  में कभी न कभी मायूसी के कुछ लम्हात को झेलता ही है ... तब तमाम कायनात उसे फीकी सी नज़र आती है .... इस क्षण को कविता के रूप में

आखिर कब तक

जीने का अर्थ
क्या सिफ जीना
और सांस लेते जाना
उधर मांगे से पलों में
एक सांस भी अपनी न पाना
अपनी ही लाश
कंधे पर लादे
सफ़र ख़त्म होने के इंतज़ार में
बस चलते चले जाना
हमसफ़र के धोखे में
अकेले ही
सफ़र तय करते जाना
मायूसी की   सियाह रात में ,
रोशनी का एक कतरा तलाशते हुए 
बदहवास से जागते जाना
एक सवाल
जो हरदम मुंह बाएं खड़ा रहता है
उससे नज़रे चुरा
बच के निकल जाना
आखिर कब तक
उठाएंगी बोझ साँसें
इस उधार की  गठरी का
कभी तो थकेगा ये तन
जीने का दिखावा करते करते

 

Friday 10 June 2011

आफताब हूँ


आफताब हूँ ,ताउम्र झुलसता - जलता रहा हूँ
पर सौगात चांदनी की तुझे दिए जा रहा हूँ मैं .
रातों के सर्द साए तेरे आंचल पे बिछा,
खुद फलक से दरिया में छिपा जा रहा हूँ मैं .
जलें न मेरी रौशनी  कहीं चश्म ए तर तेरे ,
सितारों की बारात सजाये  जा रहा हूँ मैं.


Tuesday 7 June 2011

                        

फूला पलाश 

प्रिये!
जब तुम प्रथम बार मिले थे,        
तब भी फूल रहा था
जंगल में चहुँ ओर पलाश 
रक्तिम पुष्प
बने थे साक्षी,
अपने प्रथम मिलन के
पुष्पों की लाली  छितर गई थी,
दोनों के आनन पे
दूर तक फैले पेड़ों के
गलियारे में,
फूलों के गलीचे पे
साथ-साथ चहल कदमी करते,
जब कभी छू जाता था
औचक ही हाथ तुम्हारा,
सिहर सिहर उठता था ये तन,
पुलकित हो रहता मन बंजारा 
हवा के एक चंचल झोके ने
लाल पुष्प एक ,
अटका दिया था 
केशों में मेरे जब,
सम्मोहित हो, वो अपलक
देखना तुम्हारा,
और मेरा खुद में ही 
सिमट - सिमट जाना
याद अभी हैं वो बेसुध शामें,
काटी थी अक्सर
इसी पलाश तले
एक दूजे की आँखों में खोये,
कुछ न कह, सब कुछ कहते
यही पलाश तो रहा हमारे
मूक प्रेम का , मूक साक्षी
दिन बदले, मौसम बदले
ऋतु आई और ऋतु बीती
फिर आने का वादा कर
जो गए प्रिये तुम एक बार
कितनी ही बार
फूला और झरा है 
इस जंगल में
लाल पलाश
                                                  

Sunday 5 June 2011

तुम कहते हो

तुम कहते हो तो......        
झूठ ही होगा   
 साँसों की  हलचल, दिल की धड़कन
जीने का सलीका हम क्या जाने ?
नज़रों में तुम्हारी  था महज़ जुनूँ एक 
तो  प्यार नहीं   दीवानापन  होगा 

वो कसमें वादे, शिकवे वो शिकायत
आहें भरना ,  भरोसा  दिलाना
दिल नहीं दिमाग का  खेल था वो 
तुम कहते हो तो  शायद सौदा  ही होगा

( उर्दू शायरी मेरे लिए कुछ नहीं बहुत मुश्किल है .... फिर भी एक प्रयास किया है ....)

जीवन की परीक्षा में



परीक्षा में बैठे , परीक्षार्थियों से 
प्रश्न पत्र को उलटते पलटते 
उत्तरों को अपनी यादों में टटोलते 
कभी खिन्न , कभी प्रसन्न.
घडी की सुइयों के साथ दौड़ लगाते
परिणाम की कभी आशा 
और कभी आशंका लिए 
परीक्षार्थियों से हम 
जीवन रुपी परीक्षा में
पल पल परीक्षा देते
अंतर मात्र इतना ही
उनके सामने हैं प्रश्न पत्र
और ज़िन्दगी हमारे आगे
रोज़ एक नया प्रश्न उठाती
और बिना पूर्व तैयारी के ही
उतर पड़ते हैं मैदान में
हर क्षण अनुत्तीर्ण होने की
आशंका लिए
करते जाते हैं हल
ज़िन्दगी के अनोखे
अनुत्तरित पल ........


Saturday 4 June 2011

पागल मन



कितना अच्छा होता ,
जो खाली होता ये मन
अनंत, अनादि, शून्य गगन सा,
न कोई हलचल न कोई तड़पन

पर व्योम नहीं ये तो सिन्धु है,
भावों के रत्न लिए अंतस  में,
हरदम  मंथन  को  प्रस्तुत,

चढ़े ज्वार की उन्न्मत्त लहरों सा 
सानिध्य चन्द्र का पाने को आतुर 

व्याकुलता के ज्वालामुखी में 
पल पल तडपे , पल पल सुलगे 
कुछ पल मैं भी चैन से जीती 
छोड़ता जो ये पागलपन 

कितना अच्छा होता..........   

Wednesday 1 June 2011

अनजानापन





न देखा तुझे , न जाना , न पूछा तेरा पता कभी,
न मिलने की  कोई तमन्ना , न वफ़ा की आरज़ू कोई, 

जान- पहचान की अनगिनत बंदिशों  को तोड़ के,  
अनजानापन ही तेरा, अब  बन गई तेरी पहचान नई

न कोई चाहत का जज्बा , न वादा  फरोशी की तमन्ना 
न बेवफाई  का शिकवा   , न वफ़ा  की उम्मीद  कोई .

उम्र ए रहगुज़र पे फकत चाँद लम्हात का हम सफ़र 
गुफ्तगूँ के कुछ हसीं किस्से , दिलफरेबी की कुछ कहासुनी .

आवाज़ की एक अनजानी दुनिया , चेहरों की भीड़, जिस्मों का हुजूम 
रिश्तों की अनगिनत दीवारों में , खुल गई खिड़की अनदेखी नई  

कैनवास


मन का कैनवास 

कभी रंगीनियों से भरा
हर तरफ खुश रंग ख्यालों से सजा 
कभी काले धूसर उदास से सायों से घिरा  
कभी हर रंग पर बेरंग
 वितान तन जाते हैं 
और कभी इन्द्रधनुष से 
शादाब गुल खिलखिलाते हैं 
कभी बीते  लम्हें निशाँ
 अपने छोड़ जाते हैं 
तो कभी आने वाले पल 
खाका अपना खींच जाते हैं 
पर यह  कैनवास 
कभी कोरा नहीं रहता 
साँसों की डोर से बंधी ये कठपुतलियां
नाचती रहती हैं 
टूटती नहीं जब तक
साँसों की डोर   
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