कितना अच्छा होता ,
जो खाली होता ये मन
अनंत, अनादि, शून्य गगन सा,
न कोई हलचल न कोई तड़पन
पर व्योम नहीं ये तो सिन्धु है,
भावों के रत्न लिए अंतस में,
हरदम मंथन को प्रस्तुत,
चढ़े ज्वार की उन्न्मत्त लहरों सा
सानिध्य चन्द्र का पाने को आतुर
व्याकुलता के ज्वालामुखी में
पल पल तडपे , पल पल सुलगे
कुछ पल मैं भी चैन से जीती
छोड़ता जो ये पागलपन
कितना अच्छा होता..........
नवीन कल्पना एवं उपमा सँजोय सुंदर रचना !
ReplyDeletethanx sushila ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर | मन की चंचलता तो वायु के वेग पर भी भारी है |
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