Wednesday, 1 June 2011

अनजानापन





न देखा तुझे , न जाना , न पूछा तेरा पता कभी,
न मिलने की  कोई तमन्ना , न वफ़ा की आरज़ू कोई, 

जान- पहचान की अनगिनत बंदिशों  को तोड़ के,  
अनजानापन ही तेरा, अब  बन गई तेरी पहचान नई

न कोई चाहत का जज्बा , न वादा  फरोशी की तमन्ना 
न बेवफाई  का शिकवा   , न वफ़ा  की उम्मीद  कोई .

उम्र ए रहगुज़र पे फकत चाँद लम्हात का हम सफ़र 
गुफ्तगूँ के कुछ हसीं किस्से , दिलफरेबी की कुछ कहासुनी .

आवाज़ की एक अनजानी दुनिया , चेहरों की भीड़, जिस्मों का हुजूम 
रिश्तों की अनगिनत दीवारों में , खुल गई खिड़की अनदेखी नई  

1 comment:

  1. कुछ एहसास ऐसे होते हैं जो तमाम पावनता लिए होते हैं फिर भी उन्हें कुछ नाम देना सरल नहीं होता! अंतिम पंक्ति बहुत ही सुंदर लगी !
    मन की कौन-सी खिड़की कब खुल जाए, कहा नहीं जा सकता ! किंचित इसी में जीवन का रोमांच है !

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