न देखा तुझे , न जाना , न पूछा तेरा पता कभी,
न मिलने की कोई तमन्ना , न वफ़ा की आरज़ू कोई,
जान- पहचान की अनगिनत बंदिशों को तोड़ के,
अनजानापन ही तेरा, अब बन गई तेरी पहचान नई
न कोई चाहत का जज्बा , न वादा फरोशी की तमन्ना
न बेवफाई का शिकवा , न वफ़ा की उम्मीद कोई .
उम्र ए रहगुज़र पे फकत चाँद लम्हात का हम सफ़र
गुफ्तगूँ के कुछ हसीं किस्से , दिलफरेबी की कुछ कहासुनी .
आवाज़ की एक अनजानी दुनिया , चेहरों की भीड़, जिस्मों का हुजूम
रिश्तों की अनगिनत दीवारों में , खुल गई खिड़की अनदेखी नई
कुछ एहसास ऐसे होते हैं जो तमाम पावनता लिए होते हैं फिर भी उन्हें कुछ नाम देना सरल नहीं होता! अंतिम पंक्ति बहुत ही सुंदर लगी !
ReplyDeleteमन की कौन-सी खिड़की कब खुल जाए, कहा नहीं जा सकता ! किंचित इसी में जीवन का रोमांच है !