Friday 26 July 2013

राधा बनी कान्हा



(मुक्त छंद)

तू मेरी राधा बन कान्हा, मैं अब तेरा कान्हा बनूँगी |

गौर वर्ण को तज अपने , तेरा श्याम वर्ण गहूँगी |


मोर मुकुट सिर धारुँगी, पर मुरली अधरों पर न धरुँगी |


ग्वालों संग वन-वन भटकूँ, लोक लाज सगरी तजूंगी ||

Tuesday 23 July 2013

फुर्सत तो मिले

फुर्सत तो मिले
एक बार ज़रा
न जाने कितने काम करने हैं
कितने ख्याल पकाने हैं
कितने ख़्वाबों में रंग भरने हैं

हाँ, छुट गयी थी बहुत पहले
एक ग़ज़ल आधी अधूरी-सी
कुछ कहि,कुछ अनकही
कुछ अनसुलझी पहेली-सी

सिरे उसके अब पकड़
कुछ समेट कर धरने हैं

हर बार का बहाना कि बस अभी
फुर्सत अभी ज़रा सी  मिलती है
इस 'अभी' के इंतज़ार की
घड़ी, न जाने कब तक बहलती है
हम सोचते रहते कि बस
अब हिसाब करते हैं

फुर्सत तो मिले ....एक बार ज़रा

Monday 1 July 2013

तू जिए जा मुझे.



लफ़्ज़ों में ढाल ले या खामोश पिए जा मुझे.
जिंदगी हूँ हरेक हाल में तू जिए जा मुझे.

ज़ख्म गहरा मगर दर्द यूँ तमाशा ना बने .
बनने नासूर तक कर सबर कि सिए जा मुझे .

ना टूटेंगे कभी आज़मा ले हमें जितना भी.
अपनी हद से बाहर, दर्द चाहे दिए जा मुझे.

डगमगा ना कदम जाएँ अंजाम की सोच में.
फ़र्ज़ हूँ मैं तेरा, बिना खौफ किए जा मुझे .

बाद में पछताने से भला क्या होगा ऐ इंसाँ.
मौका हूँ मैं तेरा हाथों हाथ लिए जा मुझे .


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